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खग्रास


प्रोफेसर ने उसे अच्छी तरह कम्बल से ढांप दिया और लिजा को कुछ इशारा करके वहाँ से चल दिए। लिजा जोरोवस्की का सिर गोद में लेकर अपनी गर्म-गर्म हथेलियों से उसे सहलाने लगी। जोरोवस्की को नींद आ गई।

श्वेत अन्धकार

दो दिन विश्राम करने के बाद जोरोवस्की की तबियत बिलकुल ठीक हो गई। अब वह उन सब अद्भुत दृश्यों को बता रहे थें जो उन्होंने उस दिन देखे थें। प्रोफेसर ने हंस कर कहा—"तुम्हें दृष्टि भ्रम हुआ। समझो, दक्षिण ध्रुव एक विशाल कमरा है जिसके चारों ओर की दीवारों, छत, फर्श आइने की बनी है। जब हवा की गर्म और ठन्डी परतों से होकर प्रकाश की किरणें गुजरती है तो वह बिम्बित-प्रतिबिम्बित होती है। इसी से ऐसा दृष्टि-भ्रम बहुधा यहाँ हो ही जाता है।"

जोरोवस्की जोर से हंस पड़े। उन्होंने कहा—"देखिए इतनी साधारण सी बात मेरी समझ में नहीं आई।"

"इस विचित्र देश में बहुत सी विचित्र बातें देखने को मिलेगी। हाँ, तुम उस चट्टान पर कैसा परीक्षण कर रहे थें? तुमने कहा था न, कि एक चट्टान पर तुमने कुछ साधारण चिह्न देखे थे।

"जी हाँ, मुझे वहाँ निश्चित रूप से ऐसा प्रतीत हुआ कि वहाँ कभी मानव पहुँचा है। मानव के वहाँ पहुँचने के स्पष्ट चिह्न मुझे वहाँ दीखे थें। मैं स्काट की बात भूला नही हूँ—सम्भव है कि राबर्ट स्काट उसी चट्टान के नीचे अनन्त विश्राम कर रहे हो।"

"तो चलो, आज उसकी सही जाँच करली जाय। तुमने कहा न, कि वह यहाँ से कोई दो मील के अन्तर पर है।"

"कहा तो, परन्तु मुझे भय है कि अब मैं ठीक उसी जगह पहुँच भी सकूँगा या नही। क्योंकि मैं वहाँ से सर्वथा बद हवासी की हालत में लौटा हूँ।"