थी। उन्होंने जोर से लिजा का हाथ पकड़ कर कहा—"क्या तुम सचमुच यहाँ हो,"
"हाँ, हाँ, लो यह एक प्याला गर्म काफी पिओ। और अभी तुम्हारी तबियत ठीक हो जायगी।"
"लेकिन मैं हूँ कहाँ?"
"तुम अपने शिवर में हो।"
"क्या—क्या तुम सच कह रही हो?"
"हाँ, हाँ, तुम अपने शिविर में हो।"
"और वह घाटी"
"कौन सी घाटी?"
"वह समुद्र। वह उलटा हुआ जहाज?"
"कौनसी घाटी? कौनसा जहाज?"
"मैने सब को देखा है। अभी देखा है"। जोरोवस्की पागल की तरह उठ कर भागने लगे। पर प्रोफेसर ने उन्हें पकड़ कर बिस्तर पर लिटाया। और लिज़ा ने काफी का प्याला उनके मुँह से लगा दिया। काफी पीकर उनका चित्त ठिकाने आया। और उन्होंने लिज़ा की ओर देख कर कहा—
"तो यह तुम हो"
"उन्होंने कस कर लिज़ा की कलाई पकड़ ली। लिज़ा ने कहा—"देखो, प्रोफेसर भी है।"
जोरोवस्की ने प्रोफेसर की ओर आँख उठाकर देखा, फिर कहा—"हम लोग कहाँ है प्रोफेसर?"
"अभी तुम आराम से सोओ। तुम अपने शिविर में हो।"
"लेकिन मैंने तीन सूरज देखे हैं।"
"हाँ हाँ, अब तुम सो जाओ।"
"यह शिविर भी मेरे पास पहुँच गया था।"
"अब तुम सो जाओ दोस्त, हम सब मसलों पर फिर बात करेंगे।"