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खग्रास

आधुनिक यन्त्रों से काट डाला गया—और तेल और चर्वी अलग अलग करने के लिए उसके माँस खण्ड वायलरो में डाल दिये गये। इसके बाद पनडुब्बी ने फिर अन्तिम यात्रा के लिए गहरा गोता लगाया और समुद्र गर्भ में प्रागे बढ़ी। उसके ऊपर १४ सौ फीट मोटी बर्फ की तह जमी हुई थी।

श्वेत द्वीप

"दक्षिणी ध्रुव" के विस्तृत मैदान में चारों ओर श्वेत ही श्वेत दिखाई पड़ रहा था। अनन्त बर्फ का साम्राज्य चारों ओर था। कहीं बर्फ के पहाड़, कहीं बर्फ की लम्बी नालियाँ, कहीं जहाज के आकार के, कहीं किले और नगर के आकार के हिमपिण्ड दीख पड़ रहे थें। वे सब सूर्य की तिरछी किरणों के श्वेत प्रकाश में चाँदी से चमक रहे थें। लिज़ा—जोरोवस्की और प्रो॰ कुरशीनोव—तीनो व्यक्ति आँखे फाड़-फाड़ कर आश्चर्य से इस अनदेखे दृश्य को देख रहे थें। लिज़ा ने कहा—"मै तो इसका नाम "श्वेत द्वीप" रखना चाहूँगी।"

"ठीक है। हम अब इसे श्वेत द्वीप ही कह कर पुकारेंगे। हमारे सौभाग्य से अब उपयुक्त ऋतु का आगमन हो गया है। यहाँ का ग्रीष्म काल का अब प्रभात ही है। यहाँ यह ग्रीष्म ऋतु पूरे एक दिन तक रहेगी। और यह दिन ढाई मास का होगा।"

"अर्थात् ढाई मास तक सूरज नहीं डूबेगा, रात नही होगी?"

"बेशक यही बात है। साढ़े नौ महीने यहाँ रात रहती है। यह लम्बी रात ही यहाँ की शीत ऋतु है। परन्तु इस ग्रीष्म ऋतु में भी हमे बर्फीले तूफानों का सामना करना पड़ेगा। जो रात दिन यहाँ चलते ही रहते हैं। बहतर हो कि समतल स्थान की देखभाल हम आरम्भ करदे।"

इस रूसी अभियान का नेतृत्व स्वयं डा॰ कुरशानीव कर रहे थें। उनके साथ एक समुद्री जहाज भी था जिसमें छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी कोई ढाई लाख भिन्न-भिन्न वस्तुयें थी। जिनमें बहुत से तो विविध यन्त्र थें, बहुत सी चीजें पैमाइश और सर्वे के काम की थी। खाद्य सामग्री, ऋतु विज्ञान