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खग्रास
ध्रुव विजय

जोरोवस्की का वायुयान छोटा-किन्तु सब आधुनिकतम साज सज्जा और वैज्ञानिक सुविधाओं से परिपूर्ण था। इस समय लिजा उसके साथ थी— और उनकी यह यात्रा मधुयात्रा के समान मनोरम और दिलचस्प थी। वे ठेठ दक्षिण की ओर उड़े चले जा रहे थें। मौसम अनुकूल था। रूसी दक्षिण कैम्प ध्रुव क्षेत्र में स्थापित हो चुका था और उससे उनका रेडियो सम्बन्ध स्थापित था। मास्को से भी उनका सम्बन्ध था। दोनों ही स्थानों से उन्हें भूतत्त्व दल ग्रुप से आवश्यक सूचनाएँ मिल रही थी।

उनके साथ जो आवश्यक यन्त्र थें। उनके कारण उनके यान में १५ हजार पौण्ड वजन हो गया था। यह वज़न इतना अधिक था कि अब एक आउन्स भी और नहीं बढ़ाया जा सकता था। यद्यपि जोरोवस्की ने खूब सावधानी से उतनी ही सामग्री साथ ली थी जितनी की अत्यन्त आवश्यकता थी। परन्तु फिर भी वजन उनके पास अत्यधिक हो गया था। वास्तव में एक यही चिन्ता का विषय भी था।

उनका यान मैदानों को पार करता हुआ उड़ा चला जा रहा था। इस समय यान में इन दोनों के अतिरिक्त दो व्यक्ति और थें। एक जोक्रोव था। इसका शरीर गठित और ठिगना था। यह इन्जीनियर था। वह प्रतिक्षण वायुयान की मशीनों और अन्य यन्त्रों को देखता जा रहा था। दूसरा व्यक्ति चालक था। पहाड़ी उड़ानों में उसका बहुत अनुभव था। साइवेरिया क्षेत्र में उसने बहुत उड़ाने की थी। वह एक मँजा हुआ साहसी पायलेट था। दिशासूचक यन्त्र पर उसकी दृष्टि थी और वह जब तब जोरोवस्की से सलाह ले लेता था। जोरोवस्की नक्शे तैयार करने और मापतोल के सूक्ष्म कामों की उलझन में फंसा था। लिजा निरन्तर फोटो लेती तथा रेडियो द्वारा उन्हें मास्को भेजती जा रही थी, संदेशवाहन और ग्रहण भी वही कर रही थी।

ज्यों-ज्यों ध्रुव क्षेत्र निकट आता जाता था वास्तविक कठिनाइयों का आरम्भ होता जा रहा था। वे हीवर्ग ग्लेशियर को सकुशल पार कर गए