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खग्रास

टूट गई। और टूटती बर्फ में आदमी गिरने लगे। और समूचा कैम्प जैसे धकेल कर दूर फैंक दिया गया। इस अभूतपूर्व घटना से कैम्प में घबराहट फैल गई। जो लोग टूटती बर्फ में गिर गए थें उन्हें किसी तरह निकाला गया। कुछ लोग बर्फ के टुकड़ों के सहारे तैरने लगे। इस समय एक विचित्र धुन्ध वहाँ फैली थी। ऐसी धुन्ध केवल बर्फ के पानी से ही उत्पन्न होती है। कैम्प की तत्काल मरम्मत कर डाली गई। बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़ों को जोड़ कर भोजनालय और शयनागार बनाए गए। एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिए सुरगे बनादी गई। रेडियो के तीन बड़े-बड़े फौलादी बुर्ज तैयार कर दिए गए। और खाद्य सामग्री जिस कोठरी में थी उसकी छत पर तिरपाल बिछादी गई। एक बड़े कमरे का निर्माण करके उसमे सब आवश्यक यन्त्र लगा दिए गए।

सब कमरे, जब सूरज की धूप खिलती, एक गहरी मोहक नीली चमक से चमकने लगते थें। सर्दी के अन्धेरे में टौर्च से प्रकाश काम लिया जाता था। यात्रा दल में अनेक भौतिक शास्त्री, इन्जीनियर और वैज्ञानिक थें। वे सब अपने-अपने काम में लग गए। परन्तु सबसे कठिन का काम बढ़ई और लुहारो को करना पड़ रहा था। कीले जो गाड़ी जाती थी—पहिले स्टोव पर गर्म करली जाती थी। ठण्डी गाड़ने से वे सून्य से नीचे तापमान में इतनी कड़क हो जाती थी कि चोट से टूट जाती थी। मास जो कैम्प में साथ था इस कदर जम गया था कि कुल्हाड़ों से काटा जाता था। कुछ मुर्गे मुर्गियाँ भी साथ थी। जिन्हें कृत्रिम गर्मी में जिन्दा रखा गया था। उनसे कभी-कभी ताजा स्वादिष्ट मांस और ताजा अण्डे मिल जाते थें। सब लोग नास्ता करते, फिर दोपहर का भोजन करते थें। अण्डे भी जम गए थें। कभी-कभी शील मछली और पेइगुन का शिकार होता था। परन्तु उनका मास अत्यन्त गन्धयुक्त होता था।

कैम्प में कुत्तो की खास देखभाल की जाती थी। कुत्ते ही इस हिम प्रदेश के वाहक थें। सामग्री ढोने का काम प्रायः कुत्तो की गाड़ी द्वारा होता था।