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खग्रास

जमी हुई बर्फ है। इसीसे उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में जब यात्री उत्तरी समुद्र की बर्फ पर चलता है तो मालूम नहीं होता कि बर्फ कहाँ बह जाएगी। परन्तु दक्षिण में वह विश्वास के साथ भीतरी भाग में जा सकता तथा उसी मार्ग से लौट सकता है।

पेगुइन पक्षी—जो कभी लाखों वर्ष पहिले जब वहाँ गर्मी रही होगी तब शायद उड़ सकते होंगे पर अब उनके डेनो पर पंख नहीं है। केवल लचकदार हड्डियाँ है जिनसे वे तैरते हैं।

दक्षिणी ध्रुव प्रदेश के भीतरी भाग में जाने के केवल दो ही ज्ञात मार्ग है। जिनमे से एक सर जेम्स क्लार्क मैन्स नामक एक साहसी अंग्रेजी ने मालूम किया था—जो अपने पुराने जहाज द्वारा न्यूजीलैण्ड के दक्षिण की बर्फ को पार करके खुले पानी के एक बहुत बड़े टुकड़े तक पहुँचने में सफल हुआ था। दूसरा मार्ग भी एक अंग्रेज ने ही ज्ञात किया था जो अधिक खतरनाक है। परन्तु बाद में वायुयानों द्वारा अब सारा ही ध्रुव प्रदेश ठीक-ठीक देख लिया गया। दक्षिणी ध्रुव में दो व्यक्ति सबसे अधिक खोज लगाने वाले आ पाए—एक नार्वे का रौल्ड अमण्डसन दूसरा अँग्रेज कैप्टिन राबर्ट फाल्कन स्काट। दोनों ने ही—सन् १९११-१२ में एक ही महीने के अन्तर से यात्रा की थी। स्काट ने वहीं समाधि ली थी। वायुयान द्वारा पहुँचने वाला पहिला व्यक्ति रीयर एडमिरल रिचर्ड ई॰ वायर्ड था जो वर्जिनिया का निवासी था और वायु सेना में कमान्डर था। उस समय तक वायुयान के एन्जिनो का इतना विकास नही हुआ था। और रिचर्ड वायर्ड का यह दुस्साहस था।

अनौखा कैम्प

जोरावस्की और लिजा ने कैम्प का निरीक्षण किया—यह छोटा सा रूसी वैज्ञानिकों का कैम्प बड़ा अद्भुत सा लग रहा था। इतने विशाल महाद्वीप में वे थोड़े से आदमी विचित्र से लग रहे थें। एक प्रकार से सारा कैम्प तैर रहा था—और उसके १६ सौ फुट नीचे पानी था। अभी इस स्थान पर कैम्प की स्थापना हुए तीन दिन भी नहीं बीते थें कि बर्फ की खाड़ी