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खग्रास

'योरोप के सर्वोच्च मित्र राष्ट्रीय सेनापति' के आधीन थी। इन दिनों इस पद पर जनरल नोरस्टेड नियुक्त थें। इस सर्वोच्च कमान के मातहत चार क्षेत्रीय कमान थी जो जल-थल और वायु सेनाओं में सहयोग स्थापित करती थी। यद्यपि नाटो संगठन के सभी १५ देश अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार संगठन की सेनाओं पर व्यय करते थें। किन्तु अमेरिका ही सबसे अधिक धन और हथियार दे रहा था। इस समय तक जबकि रूसी स्पूतनिक ने योरोप का कलेजा दहला दिया था, अमेरिका नाटो संगठन पर २२ अरब डालर खर्च कर चुका था। और इससे छै गुना धन योरोप के नाटो सदस्यों ने खर्च किया था। इस प्रकार गत आठ वर्षों में नाटो संगठन के राष्ट्रों ने १५४ अरब डालर खर्च किये थें जिनकी गिनती रुपयों मे ७७० अरब रुपए होती थी। यह इतनी बड़ी रकम थी जितनी भारत अपनी वर्तमान आमदनी के हिसाब से १०० सालो में व्यय कर पायगा। क्योंकि भारत सरकार का वार्षिक व्यय लगभग सात अरब रुपया है। इस समय नाटो संगठन के पास १०० डिवीजन सेना थी जिसका अर्थ है कि १० लाख सैनिक थें। इसके प्रतिष्ठित नाटो कमान के मातहत ६,००० बमवर्षक और १६० हवाई अड्डे थें। नौ सेना और युद्धपोतों की संख्या गुप्त रखी गई थी। और अब सारे ही नाटो संगठन के देश अपनी इस असाधारण कार्यवाही को रूसी स्पूतनिक की सफलता के बाद हास्यास्पद समझ रहे थें। इसी से बीमारी की अवस्था में ही अमेरिकन राष्ट्रपति को पेरिस तक की दौड़ लगानी पड़ी थी।

आइसनहावर का पत्र

पैरिस से लौट कर अमरीकी प्रेसिडेण्ट आइसनहावर ने सोवियत रूस की मन्त्रि-परिषद् के तत्कालीन प्रधान, श्री निकोलाइ बुल्गानिन के नाम एक पत्र लिखा—

"मनुष्यो में शान्ति और सद्भाव की हार्दिक कामनाएँ अनादि काल से विद्यमान रही है। किन्तु सरकारों के नेताओं द्वारा शान्ति की दुहाई देना उनके असली इरादों का सदा विश्वसनीय प्रमाण सिद्ध नहीं हुआ है। इस मामले का मूल तत्व है उन शर्तों का निश्चय करना जिनके आधार पर शान्ति