यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५०
खग्रास

में अमरीकी प्रक्षेपणास्त्रों के अड्डे न बनने दे। अन्यथा उनके देश का भविष्य खतरे में है। तो नाटो के योरोपीय देशों में खलबली मच गई। और नाटो के १५ सदस्य राष्ट्रों के प्रधानों ने पेरिस में एक शिखर सम्मेलन किया। बीमारी की हालत में ही इस सम्मेलन में भाग लेने अमेरिकी राष्ट्रपति आइसन हावर पैरिस आए। स्पष्ट ही इसका कारण यह था कि नाटो के विघटन होने का पूरा खतरा उपस्थित हो गया था। इसी खतरे को टालने और रूसी भय को योरोपीय देशों के मन से हटाने को यह पैरिस सम्मेलन हो रहा था। इस समय कोई भी योरोपीय देश रूस से दुश्मनी मोल लेने का साहस नहीं कर सकता था। अमेरीका ने अन्तर महादेशीय प्रक्षेपणास्त्र के अड्डे योरोपीय देशों में बनाने का जब इस सम्मेलन में प्रस्ताव रखा तो नार्वे और डेनमार्क ने तत्काल इन्कार कर दिया।

(उत्तरी अतलान्तक सुरक्षा संगठन) नाटो सन्धि ४ अप्रैल १९४९ को वाशिंगटन में हुई थी। इसमे १२ देशों ने हस्ताक्षर किये थें। अमेरिका, कनाडा, वेल्जियम, डेनमार्क, फ्रान्स, आइसलैण्ड, इटली, लक्सम्बर्ग, नीदर लैण्ड्स, नार्वे, पुर्तगाल और ब्रिटेन। फर्वरी १९५२ में यूनान और टर्की भी इसमें सम्मिलित हुए। मई १९५५ में पश्चिमी जर्मनी की सरकार भी आ मिली। इस प्रकार यह नाटो सगठन १५ योरोपीय देशों का संगठन था। नाटो संगठन का काम दो प्रकार की संस्थानों से होता रहा। एक फौजी दूसरी गैर फौजी। संगठन की सबसे प्रमुख संस्था उत्तरी अतलातिक परिषद्थी । इसके सदस्य सभी नाटो देशों के विदेश मन्त्री, सुरक्षा मन्त्री, और वित्त मन्त्री थें। पर वे अपने प्रतिनिधि ही प्रायः भेजा करते थें। परिषद् की २० स्थायी समितियाँ थी जो एक-एक विषय के लिए जिम्मेदार थी। नाटो देशो की सरकारों और इस संगठन के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का काम अन्तर्राष्ट्रीय नाटो कार्यालय करता था। जिसका प्रधान सैक्रेटरी जनरल कहाता था। उन दिनों वेलजियम के श्री हेनरी स्पेक इस पद पर थें।

फौजी संगठन का काम 'स्थायी फौजी समिति' करती थी। प्रत्येक देश का प्रधान सेनापति इस समिति का सदस्य होता था। नाटो सेनाएँ