दिया। १७ वीं शताब्दी के प्रारम्भ ही में पुर्तगालियों का स्थान डचों ने ले लिया। उनके पीछे ही अंग्रेजों ने पाँव फैलाए। दूसरा चरण समाप्त होते न होते फ्रांस भी वहाँ आ धमका। इस समय डचों और अंग्रेजों का संघर्ष चल रहा था। डचों ने अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों को वहाँ से उखाड़ फेंका। और १९ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ही उन्होंने वहाँ एकाधिकार स्थापित कर लिया। और अब अपना व्यापारिक अधिकार स्थापित करके सैनिक प्रभुत्व भी कायम कर लिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में इण्डोनेशिया ने स्वाधीनता के लिए हाथ-पैर मारने आरम्भ कर दिये थें। और एक जबर्दस्त राष्ट्रीय संगठन कर डाला। द्वितीय महायुद्ध में डचों ने जापान से पिट कर इण्डोनेशिया को उसके भाग्य हर छोड़ दिया। इसी समय डाक्टर सुकर्ण जैसे कर्मठ पुरुष आगे आए, और सन् १९४५ के अगस्त में जापान के परास्त हो जाने पर उन्होंने अपने देश को सर्वथा स्वतन्त्र घोषित कर दिया। परन्तु अंग्रेजों ने उनके नाम से अपनी सत्ता जमा ली और डचों के हाथ में देश की बागडोर दे दी। एक गहरा संघर्ष चला और अन्त में सयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता में इण्डोनेशिया की सर्वथा स्वतन्त्र सत्ता स्वीकार कर ली गई।
अब स्वतन्त्र इण्डोनेशिया की कुछ अपनी समस्याएँ थी, डचों ने अभी पश्चिमी न्युगिनी को पूरी तरह मुक्त नहीं किया था। और वे उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करते रहते थें। उसका भयानक विस्फोट सैनिक विद्रोह के रूप में फूट निकला। जिसे बड़े धैर्य और साहस से काबू किया गया। और पंचशील के आधार पर देश की घरेलू नीति और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति स्थिर की गई। राष्ट्रपति सुकर्ण ने भारतीय महामान्य नेहरू से मिल कर शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त का समर्थन किया।
नाटो
रूस जब अपने दो शक्तिशाली उपग्रह आकाश में स्थापित कर चुका और अमेरिका को हर बार विफलता का सामना करना पड़ा तब शेर होकर सोवियत रूस ने नाटो के योरोपीय देशों को चेतावनी दी कि वे अपने देशों