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खग्रास

कड़ी फिर से जोड़ने को ही नेहरू-सुकर्ण मैत्री का सूत्र पात हुआ जिसे अटूट रूप देने भारतीय राष्ट्रपति ने इस देश की यात्रा की।

हिन्देशिया का वाडुग नगर विश्व की आँखो का केन्द्र बना हुआ था। वहाँ २९ एशियाई-अफ्रीकी राष्ट्रों का सम्मेलन होरहा था। नगर में बड़ा उत्साह था। नर-नारी चमकीले वस्त्रों में होंठों पर मधुर मुस्कान लिए आ जा रहे थें। नारियों के कमर तक रंग-बिरंगी साड़ियाँ बन्धी थी। वे लाल या फूलों वाले कपड़े की जाकटे पहने थी। उनके बालों के जूडे़ बड़े ही आकर्षक थें। उनके सुन्दर पैरों में नक्काशी काम के लकड़ी के स्लीपर पड़े थे। वे दल बांध कर झूम-झूम कर लोक गीत गा रही थी। आगन्तुक अतिथि मोह से उनके उल्लसित जीवन को देख रहे थें।

वाडुग नगर पश्चिमी जावा की राजधानी था। बड़ा साफ सुन्दर नगर है वाडुग। साफ सुथरी चौड़ी सड़कें, हरे-भरे सघन वृक्षों से आच्छादित। सब आधुनिकतम सुविधाओं सहित। स्वास्थ्य वर्धक जलवायु और नैसर्गिक शोभा का भण्डार वाडुग आज दुलहिन की भांति सज रहा था। शीतल वायु, रंग-बिरंगे फूलों की झूमती हुई क्यारियों, चाय की खिलती हुई कलियों की भीनी भीनी सुगन्ध पूर्ण मुस्कान की छटा निराली थी।

संसार की बड़ी शक्तियाँ उत्सुकता से इस सम्मेलन के परिणाम को देख रही थी। यह बड़ी बात समझी जा रही थी कि शीत युद्ध की भूमिका में चीन और तुर्की जैसे परस्पर विरोधी विचारों वाले देश विश्व शान्ति की राह खोज रहे थें। सम्मेलन की समाप्ति पर जो विज्ञप्ति प्रकाशित हुई उसमें २९ राष्ट्रों का सर्वसम्मत निर्णय निहित था। हकीकत में यह विश्व के लिए एक चुनौती थी। विश्व के इतिहास में प्रथम बार ही २९ राष्ट्रों ने यह सम्मिलित गर्जना की थी कि अब वे किसी के गुलाम नहीं रहेंगे। इस सम्मेलन में यह स्पष्ट हो गया था कि अफ्रीका-एशिया में तीन विचार धाराओं वाले राष्ट्र है। एक वे जो हर समस्या को स्वतन्त्र रूप से हल करना चाहते थें। दूसरे वे जो पश्चिमी राष्ट्रों से प्रभावित थें। तीसरे वे जो कम्युनिस्ट समर्थक थें। सम्मेलन के आरम्भ में पाकिस्तान, लंका तुर्की, थाइलेण्ड, ईराक, फिलीपीन व