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खग्रास

सबसे प्रसिद्ध लेखक चुग-वेन जैसे लेखक मौन हो गए। कुछ चीनी बुद्धि-जीवियों ने साम्यवादी यथार्थवाद के विरुद्ध मुँह खोला तो उन्हें प्रति-क्रान्ति- वादी घोषित कर दिया गया। और कैद कर लिया गया। अन्त में चीनी प्रधान मन्त्री चाऊ-एन-लाई ने इस बौद्धिक सडाध को समझा और फिर माओ-त्से-तुग ने वह घोषणा की।

बुद्धिजीवियों ने माओ-त्से-तुग के उस सुझाव को उनके पूर्ण शाब्दिक अर्थों में ग्रहण किया। यथार्थ सरकारी पत्रों ने इसे आवश्यकता से अधिक उदारता कहा। परन्तु बुद्धिजीवी इसी पर आगे बढे़। परन्तु हगरी की क्रान्ति के बाद उसमे फिर बाधा आ उपस्थित हुई। कुछ दिन पूर्व चीन की विज्ञान सम्बन्धी एकादमी के अध्यक्ष कुओ-मो-चो ने इस सम्बन्ध में एक मत व्यक्त किया था—"लिखने और वाद-विवाद की स्वतन्त्रता की पहिली शर्त यह है कि इससे लोगों का हित हो, परन्तु इसका अभिप्राय लेखकों को ऐसी छूट देना नहीं कि जिसकी कोई सीमा ही न हो। इसका यह भी मकसद नहीं कि हमारी क्रान्ति के विरुद्ध लिखने और बोलने की स्वतन्त्रता लोगों को दे दी जाय। संक्षेप में लेखक को शासन की विचार धारा के विपरीत नहीं जाना चाहिए।"

सन् १९५८ के प्रारम्भ में ही पूर्व-पश्चिम वार्ता की चर्चा उठी थी, प्रस्ताव था तत्कालीन सोवियत प्रधान मन्त्री मार्शल बुलगानिन का। परन्तु अमरीकी विदेश मन्त्री डलेस ने प्रस्ताव रद्द कर दिया था। बाद में अमरीका के राष्ट्रपति ने बुलगानिन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था और रूस को आश्वासन दिया था कि अमेरिका किसी हमलावर का समर्थन नहीं करेगा। उसी दिन उन्होंने अमेरिका का फौजी व्यय बढ़ा कर कुल आय का ७५ प्रतिशत कर दिया। अब अमेरिका की स्थल सेना पौने नौ लाख, नौ सेना ६ लाख तीस हजार और वायु सेना आठ लाख ५० हजार थी। और उसका वार्षिक व्यय २॥ खरब के लगभग था। यह रकम भारत की कुल वार्षिक आय से ३३ गुनी थी। नए बजट में अमेरिका ने स्थल सेना में तीन लाख सैनिकों की कटौती करके प्रक्षेपणास्त्रों से लैस नौ सेना और वायु सेना को