ने भी कुछ कसमसाहट दिखाई। पर वह दबा दी गई। पूर्वी योरोप के कुछ अन्य देशो में भी ऐसा ही किया गया।
पोत्सदम में जुलाई सन् १९४५ में एक सम्मेलन फिर किया गया। उसमे खास कर जर्मनी के भाग्य के निर्णय की चर्चा हुई। और यह तय पाया कि अधिकृत जर्मनी के आर्थिक साधनो का शोषण नहीं होगा तथा राजनीतिक अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा की जायगी। पोत्सदम में एक बात यह भी तय हुई थी कि अमेरिका, बिट्रेन और चीन जापानी सैनिको से समस्त हथियार लेकर उन्हे अपने घर वापिस भेज देगे जिससे वे अपने जीवन के रचनात्मक कार्यों में लग सके। रूस ने भी तब एक मित्र राष्ट्र की हैसियत से पोत्सदम के निर्णय को मान्यता दी थी। परन्तु इसके चार साल बाद तक (सन् १९४९ तक) कोई पौने तीन लाख जापानी रूस की कैद में थे।
जुलाई सन् १९५५ में जेनेवा में जो तीसरा सम्मेलन हुआ उसमे जर्मनी के एकीकरण की बात फिर उठी। ब्रिटेन, अमरीका, फ्रांस और रूस ने वहाँ एक संयुक्त वक्तव्य में यह घोषणा की कि योरोपीय सुरक्षा तथा जर्मनी की जनता के राष्ट्रीय हित के अनुरूप जर्मनी के एकीकरण की समस्या सुलझा दी जाएगी। परन्तु रूस और स्वतन्त्र योरोपीय राष्ट्रो में जर्मनी के एकीकरण को लेकर यह मतभेद हो गया कि स्वतन्त्र योरोपीय राष्ट्र चाहते थे कि जर्मन जनता के चुनाव के बाद एकीकरण हो। परन्तु रूस का कथन था कि ऐसा करने से जर्मनी में विद्यमान परिस्थितियो की उपेक्षा होगी।
ईरान, ब्रिटेन और रूस के बीच जो युद्धकालीन समझौता हुआ था उसमे इस बात का वादा किया गया था कि युद्ध समाप्त होने के बाद ६ मास के भीतर ही ईरान से सब मित्र राष्ट्रीय सेनाएँ हटा ली जाएगी।
१९४३ में काहिरा में एक सम्मेलन मित्र राष्ट्रो का हुआ था जिसमे सर्वसम्मति से कोरिया को उसकी स्वतन्त्रता का वचन दे दिया गया था। तब यह भी तय पाया था कि कोरिया की राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए एक संयुक्त कमीशन की स्थापना की जायगी। परन्तु सन् १९५० में उत्तरी कोरिया ने रूस की सहायता से शस्त्रास्त्रो से लैस हो कर दक्षिणी कोरिया