"आप इस प्रयत्न में कौनसा कदम उठा रहे है?"
"हम शून्याकाश में एक व्योम केन्द्र स्थापित करना चाहते है। यह व्योम केन्द्र सौर परिवार में अन्य पिण्डो तक पहुँचने के लिए, उतरने-चढ़ने का उसी प्रकार काम देगा जैसे हम पृथ्वी पर रेलवे स्टेशन से काम लेते है।"
"आप कब तक ऐसा व्योम केन्द्र स्थापित होने की आशा करते है?"
"पन्द्रह वर्ष तो अवश्य ही लग जाएगे। अभी हमे बहुत सी बातो की जानकारी हासिल करना है। उक्त व्योम में प्राणी के हृदय की गति, रक्तचाप, तापमान, श्वास क्रिया की गति आदि कैसी रहेगी, इसकी छानबीन सबसे प्रथम की जा रही है। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति से छुटकारा पाने के लिए सात मील प्रति सैकेण्ड की गति होनी चाहिए। इतनी गति पर राकेट यान चलाने के लिए भारी मात्रा मे ईंधन की आवश्यकता होगी। इसी से बचने के लिए यह व्योम केन्द्र स्थापित करने की बात सोची जा रही है। उसकी स्थापना के बाद तो फिर ५ मील प्रति सैकण्ड की गति ही काफी होगी। और एक बार यदि व्योम केन्द्र स्थापित हो गया तो फिर केवल २ मील प्रति सैकेण्ड की गति ही वहाँ से ग्रहो की उड़ान के लिए काफी होगी।"
"आप की बात से तो प्रतीत होता है कि आगामी बीस वर्षों में हम चन्द्रलोक और दूसरे ग्रहो में उसी प्रकार जाने-आने लगेंगे जैसे पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते है।"
"हम तो चन्द्रमा से भी आगे जाने की सोच रहे है। और इसके लिए चन्द्रमा को ही अड्डा बनाना चाहते है। चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति कम है, पृथ्वी से ८१ गुना हल्का है। इसलिए इसकी मुक्ति गति केवल १॥ मील प्रति सैकेण्ड है, जब कि पृथ्वी की ७ मील प्रति सैकेण्ड। इसलिए सरलता से हम चन्द्रमा को अड्डा बना कर अन्तरग्रही उड़ान कर सकते है।"
"अन्तत चन्द्रमा के बाद किसका नम्बर आएगा?"
"मंगलग्रह की यात्रा का।"
"लेकिन शून्याकाश में स्थायी स्टेशन कैसे बन सकता है।"