क्षक---प्रतिनिधि भी इसमे सम्मिलित हुये थे। इस अवसर पर घाना के प्रधान मन्त्री डा० एन्कूमा ने अफ्रीका में औपनिवेशिक शोषण का इतिहास बताते हुए कहा---दास प्रथा और योरोपीय बलात्कार हमारे इतिहास के पृष्ठो पर अङ्कित है। गुलामो के व्यापार के बाद उपनिवेशवाद आया, जिसने व्यक्ति तो एक ओर---देश के देश गुलाम बना दिये। संरक्षण के नाम पर बहुत से देशो का बन्दर-बँटवारा कर लिया। और उन्हे दूसरे महायुद्ध की समाप्ति पर भी मुक्त नहीं किया गया। अफेशियायी सदस्यो ने संयुक्त राष्ट्र संघ का बहुत द्वार खटखटाया, और कहा कि राष्ट्र संघ का चार्टर अमल में लाया जाय। पर हमारी आवाज बहरे कानो में पड़ी। अब आजाद अफ्रीकी देशो की जिम्मेदारी है कि वे समूचे अफ्रीकी महाद्वीप को आजाद कराने में कमर कस ले। उन्होने बल दे कर कहा---कि साम्राज्यवाद अपने उद्देश्यो की पूर्ति के लिये केवल फौज का ही आसरा नहीं लेता, वरन् आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्रो में परोक्ष रूप से प्रवेश करता है। और अनेक षड्यन्त्र रचता है। इसलिए छोटे और तटस्थ देशो को अत्यन्त सतर्क और सजग रहना चाहिये। इसके बाद अकारा में---'साम्राज्यवादियो, अफ्रीका छोड़ो' की सिंह गर्जना हुई।
अफ्रीका मे ६० प्रदेश है, उनमे कुल ९ मोरक्को, ट्यूनीशिया, लीविया, मिश्र, सूडान, इथोपिया, लाइवेरिया, गीनी और घाना स्वतन्त्र हो पाए थे। आशा थी कि सन् १९६० में नाइजीरिया और कैमरून भी स्वतन्त्र हो जायेगे। परन्तु अभी तो स्वतन्त्र अफ्रीका में बहुत कसर थी। समूचे अफ्रीका में उपनिवेशवाद के अन्त की आवाज ऊँची हो रही थी। अफ्रीका प्रदेश---ब्रिटेन, फ्रास, गुर्तगाल, स्पेन, और बेल्जियम, के ही उपनिवेश थे। इन पाँचो देशो की मनोवृति अब भी साम्राज्यवादी थी।
परन्तु अफ्रीका के सामने केवल स्वाधीनता की ही समस्या नहीं थी। समूचा अफ्रीका का महाद्वीप अब एक इकाई के रूप में अपने को देखना चाहता था। वह समझ गया था कि छोटे-छोटे टुकड़ों में स्वतन्त्रता कभी स्थायी नहीं रह सकती। इसलिए अफ्रीकी देश एक स्वतन्त्र राष्ट्र मण्डल बनाने की कल्पना