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खग्रास

पश्चिमी राष्ट्रो का नियन्त्रण समाप्त हो जायगा। मिस्र-सीरिया के एकीकरण के समय ही इस दूसरे अरब एकीकरण की सम्भावना प्रकट हो गई थी। अब ईराक और जोर्डन के दोनो हाशिमी राज्य मिलकर उनका नया नाम हुआ---अल-इत्तिहाद-अल-अरबी।

परन्तु इस संगठन का जो रूप बना, उसमें मिस्र-सीरिया के अरबी गणराज्य के समान एकरसता नही थी। यद्यपि यह घोषित किया गया था कि दोनो देशो की एक संघीय सरकार, एक सेना, एक झण्डा तथा एक ही विदेश मन्त्रालय रहेगा और एक ही अर्थनीति रहेगी। यद्यपि बारह सूत्री करार के अनुसार दोनो देशो के विदेश मन्त्रालय तथा दूतावास एक हो जाएँगे, तथापि संयुक्त राष्ट्र संघ में दोनो सरकारो के दो प्रतिनिधि बने रहेंगे। वित्त ओर अर्थ मन्त्रालय एक कर दिए जाएँगे पर दोनों देशो के अन्तर्राष्ट्रीय करार अलग बने रहेंगे। और उनका एक दूसरे पर कोई प्रतिबन्ध न होगा। परन्तु भविष्य में जो सन्धियाँ होगी, वे एक होगी। और दोनो देशो की अलग-अलग अपनी सरकारे तथा शाह बने रहेंगे। अब इस संगठन की कठिनाई यह थी कि ईराक बगदाद संधि संगठन का सदस्य था, पर जोर्डन नहीं था। अफवाह थी कि सऊदी अरब के शाह सऊद भी इस संघ में शरीक हो जाएँगे। परन्तु यह नहीं हुआ। क्योंकि शाह सऊद अरब देशो की एकता चाहते हुए भी तटस्थ रहना चाहते थे। वे किसी गठबन्धन में बँधने के पक्ष में नहीं थे।

वर्ष के प्रारम्भ में ही जब घाना ब्रिटिश चंगुल से छूट कर आज़ाद हुआ और अफ्रीका महाद्वीप में प्रथम अफ्रीकी स्वतन्त्र राज्य की स्थापना हुई और एशिया और अफ्रीका की जनता ने घाना की आजादी को अफ्रीका के सभी उपनिवेशो की स्वतन्त्रता का पथ प्रदर्शक माना था और समझा था कि वह दिन नजदीक आ रहा है जब अफ्रीका के सभी देशवासी आजाद होगे। धाना के बाद मलय भी डेढ सौ वर्षों की ब्रिटिश गुलामी के बाद इसी वर्ष आजाद हुआ। इस प्रकार भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और वर्मा के बाद एक एशियाई उपनिवेश ब्रिटिश परतन्त्रता के बन्धन से छूटा। अब पूर्वी एशिया