"और यदि सोचने समझने में बहुत देर हो जाय तो?"
"तो सचमुच यह दुर्भाग्य की बात होगी। खैर, यह तो कहिए, अब आप कब तक यहा मुकीम है?"
"बस, कल कूच है।"
"कल ही? लेकिन किधर? "जिधर मुह उठ जाय। आज आप हम लोगो के साथ डिनर लीजिए। लिजा प्रसन्न होगी।"
"यह तो मेरा बड़ा सौभाग्य है दोस्त।"
"तो नमस्कार, अब मै चलू गा। एक भारतीय सज्जन से मिलना है।"
"लेकिन उस महिला की बहार नहीं देखेगे। देखिए वह सामने ही तो बैठी है।"
"अब आप उनसे ऑखे सेकिए, मैं चला।" जोरोवस्की उठ कर चल दिया।"
बड़ा सुन्दर प्रभात था। सूरज की सुनहरी धूप आसमानी रंग के शीशो में छनकर एक छटा दिखा रही थी। लिज़ा जल्दी-जल्दी उठी। उसने घड़ी की ओर देखा--साढे छः बज रहे थे। उसने अपने आप ही कहा--ओह, मैं लेट हो रही हूँ। अभी दस मिनट में मुझे लंच रूम में पहुच जाना चाहिए, वहाँ जोरोवस्की मेरी प्रतीक्षा कर रहे होगे। उसने जल्दी-जल्दी आवश्यक कृत्यो से फारिग होकर कपड़े पहने। श्रृंगार किया, एक बार कदेआदम आईने के सामने खड़ी होकर वह मुस्कराई और चल दी। जोरोवस्की उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। पहुँचकर लिजा ने कहा--"क्या मैंने तुमसे प्रतीक्षा करवाई?"
"नहीं। अभी हमारे पास तीस मिनट है। हम मजे से नाश्ता कर सकते है। बैठो। देखो--मैंने तुम्हारी पसन्द की चीजो का आर्डर दे दिया है।" उसने लिजा का हाथ पकड़ लिया।