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कासि कौन सुस है मान में, ससि टीस उठती प्राण में, सखि, हहरने लगता है ह्रदय यह, जान में, अनजान में, ससि, पथ हे यह लघु हमारा बन चलो सहगामिनी श्रम, मान छोडो, मानिनी, अनी बाट जीवन की न जाने,- लुप्त होने किस ठिकाने ! कि त फिर भी बन रहे हैं- आज अपने ही बिगाने, क्यों न इस मग में बहे चिर प्रेम की म दाकिनी अब ? मान छोडो, मानिनी, अव । रेल पथ, हरदोई-कानपुर दिना ११२ १८ एस