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भाषा के प्रगतिवादी कालोचक बन्धुश्नों को वह तथाकथित वैज्ञानिक पदार्थ - वादी दर्शन मान्य है। ज्ञात नहीं इन अालोचकों ने किस सीमा तक उस दर्शन का अध्ययन किया है । सम्भव है वे उसके तत्वों को पूर्ण रूप से हृदयंगम कर चुके हों। यह भी सम्भव है कि उन्होंने ऊपरी रूप ले उसे पढ़ा-गुना-सुना हो और स्वीकार कर लिया हो। हमें देखना यह है कि क्या वह तथाकथित वैज्ञानिक पदार्थवादी दर्शन ऐसा है जिसे, सब लोगों को, बौद्धिक सदाशयता के साथ, स्वीकृत करना ही चाहिए ? मैं समझता हूँ कि पदार्थवादी दर्शन के लिए इतना बड़ा दावा करना अनुचित ही नहीं, सत्यान्वेषण की भावना के भी विरुद्ध है। मास ने “फ्योरबान सम्बन्धी स्थापनाएँ" (Theses on Fenerbach) शीर्षक अपने तस्व-निरूपण में पदार्थवादी दर्शन पर सूत्र-रूप में अपने विचार यल किये हैं। उन्हे इन "क्योरबान-सूत्र" कह सकते हैं । फ्योरवाल एक प्रख्यात पदार्थवादी दार्शनिक जर्मनी में हो गया है । उसी के दर्शन पर मार्स ने ये सून लिखे हैं। उनमें से पहला खून इस प्रकार है : The chief defect of all materialism upto now (including Feuerbach's ) is, that the object, reality, what we apprehend through our senses, is understood only through the form of the object or contemplation; but not as seasuous hunan activity; as practice; not subjectively. (Prof. Pascal's translation of the Theses oo Feuerbach appended to his edition of “The German Ideology", London, 1938, p. 197) अर्थात् मास के अनुसार, "अब तक के संपूर्ण पदार्थवाद की (जिसमें फ्योरबान का पदार्थवाद भी सम्मिलित है) न्यूनता यह रही है कि वस्तु- विषय, यथार्थ, जिसे हम इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करते हैं वह इन्द्रियार्थ केवल- मात्र उस इन्द्रियार्थ के ( बाह्य ) रूप के अर्थ में अथवा उसके मानसिक ध्यान के अर्थ में ग्रहण किया गया है, किन्तु (उस इन्द्रियार्थ को) सेन्द्रिय मानवीय क्रिया के रूप में हृदयंगम नहीं किया; (उसे) व्यावहारिकता के रूप में स्वीकृत नहीं किया; ( वह इन्द्रियार्थ) स्वक्रिया-रूप में मान्य नहीं किया गया ।" इस सूत्र पर पाठक विचार करें और देखें कि पदार्थवाद के सम्बन्ध में मार्क्स की जो मान्यता है वह कहाँ तक युक्ति-संगत एवं तर्कपूर्ण तथा बाह्य है। स्मरण रखिये कि यह सूत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसी सूत्र से धागे चलकर समूचे पदार्थवादी सौन्दर्य-कला-साहित्य-शास्त्र की उत्पत्ति होती है।