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वासि चले गए पल में तुम बिना दिए पता क, शॉख मिचौनी यह क्या ? यो मत नि सार बनो, आयो, साकार बनो। तुम मेरे इन सूने प्राणों के चिर पाहुन, श्रा जाओ पॉजन की ध्वनि करते रुन सुन सुन, भर दो मम सा ध्य गगन, गा दोकुछ स्वर गुन गुन, मम नीरव बीणा के तुम झरत तार ननो, श्राओ, साकार बनो। 4 ५ हूँढ थका हूँ तुमको मैं सब दिशि, मेरे प्रिय, तर सुधि में प्राण रमे हैं अहनिशि मेरे प्रिय, अब तो सम्मुख श्राओ, लग जानो मेरे हिय, ओ मेरे निविकार, अब तो सविकार बनो, आओ, साकार बनो। श्री गणेश कुटीर, कानपुर दिनाङ्क ६ जून १६४६ } पैतीस