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कासि १ रे मत पूछो, मम याम कहाँ है , ज्ञात नही निज धाम कहाँ है अपनापन तो लुप्त हो रहा, मरा निज का नाम कहाँ है , अन तो 'तुम' हो, और तमिस्सा है यह अँधियारी सो, प्रिय, म मान भरी भारी सी। चली पा रही है व पग घर- बरस खिचती सो इस मग पर, तारा च द्र रहित मम मम्बर, दिशा शु य मम पय विघ्नहर, आज सभी दिर शून गो हे सुमन, कली प्यारी सी, प्रिय, में आज भरा कारी सी। ५ भगा तुम सोचो होनिन मा में कोन वता आई तम धन क्यों यां सोच रहे हो, प्रियतम--- हूक उठाकर इस सीजन में? मेरी और तुम्हारी तो है, युग युग की यारी सी, प्रिय, म आज भरी झारी सी । ? भूल गये क्या मुझको, साजन ? मै हूँ वे एकति रज कए, सत्ताइस