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प्राणो के पाहुन प्राणों के पाहुन मगार औ चले गए इक क्षण में, हम उनकी परछाई हो से छले गए इस क्षण मे । P कुछ गीला सा, कुछ सीला सा अतिमि मनन जर्जर सा, ओंगन में पतझर के सूखे पतों का मार सा, आतिथेय के रुद्ध कराठ में स्वागत का घर्भर सा, यह स्थिति लसकर अकुत्ताहट हो क्यों न अतिथि के मन में प्राणों के पाहुन पाए औ' लोट चते इक क्षण में । शू य अतिथिशाला यह हमने रच्च पञ्च अयों न बनाई ? जग को अपनी शिल्प चातुरी हगने क्यों न जनाई ? उनके चरणागमन स्मरण में हमने उमर गमाई, अयं दान कर कीच मचा दी हमने अतिथि सदाम, प्राणों के पाहुन आए औ' लोट पड़े इक क्षण में । ३ वे यदि रच पूछते क्यों है अतिथि कक्ष यह सीला ? धे यदि तनिक पूछते क्यों है स्फुरित पक्ष यह गीला ? चौवीस