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शासि ध्यान बस इतना रहे हो बब्व गामी मनुज देही के वश रस रहें, सुलझे रहें सर तार तागे। राग में ही मनुज के सन सुप्त, विजडिन मान जागे । के दीय, कारागार, बरेली दिनाक १२ सितम्भर १६३ } तेइस