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लिख विरह के गान लिख विरह के गान, रे कवि, लिख विरह के गान, अमित खिलने दे अधर पर दुखभरी मुसकान, रे कवि, लिख विरह के गान। इस झड़ी में बढ़ गई है शुन्यता मम हिय विकल की, असहनीया हो गई हैं सतत धारें मेघ-जल की; किन्तु कब उनने सुनी है प्रार्थना आतुर निबल की ? तू लगा मम वेदना का आज कुछ अनुमान, रे कवि, लिख विरह के गान। २ व्योम में यह हूँढता-सा फिर रहा निशिनाथ उनको, मेष-तरियाँ गगन-सर में खोजती हैं उस निपुण को; कवि, सदेही, सगुण कर दे तू सनेही चिर निगुणा को, शून्य में कर शब्द-श्री------नाल, रे कवि, लिख विरह के गान । ३ नित्य निर्गुण चित्रपट में सगुणता की रेख भरना, है यही पुरुषार्थ नर का : अलख का अभिषेक करना; तीन