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कासि अंकित भाल-रेखा पर हुई है चिर .. -: विकल ? को का करेंगे पिय वरण वे ? कब मिलेंगे ध्रुव चरण वे ? दीप लघु मैं, तव अलख कर से समय-नद में प्रवाहित, नित्य-प्रति भगिना के प्रबल झोंकों से प्रताड़ित, टिमटिमाता बह रहा हूँ मैं जनम का ही निराश्रित ! दीप-सम्पुट कब बनेंगी 'क-गुलियाँ मन-हरण वे ? कब मिलेंगे ध्रुव चरण वे ? कौन जाने यह विकम्पित दीप तुमने कय बहाया ? क्या पता, तुमने इसे फिर, कब बुझाया, कत्र जगाया ? है पता इतना कि इसने अाज तक श्राश्रय न पाया, हैं बहाए जा रहे इसको प्रवाही उपकरण ये; कब मिलेगे ध्रुव चरण वे ? ६ कँप रही है ज्योति; अब तो तुम इसे कर दो अनिक्षित तव निवातस्थान में अब लौ लगे इसकी अशङ्कित सजन ज्योतिर्मय, करो निज पुञ्ज में इसको सुसंचित थाम दो अब तो तनिक इसके अवश-से सन्तरण ये; कब मिलेंगे ध्रुव चरण वे ? 8 श्री गणेश-कुटीर, प्रताप कानपुर, मई १६३६ } दो