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कासि उसका अज्ञान मोह आज तुम्हें हरा है, म यथा न होगा यह मानन सचिदाकार। खोलो ये बदद्वार 1 मेरे प्रिय, पा जाओ, दूर करो तम करात, मेरे काली दह का नाथो यह तिमिर याल । मरी कालि दी का दूर करो मोह काल, मेरा गृह चमका दो, सुन लो मेरी है मेरे न द द्वार। पुकार। के द्रीय कारागार, रेली दिनाङ्क २५ दिसम्बर १६६३ } सतासी