व्याकरण के कुछ अंश की समालोचना की। समालोचना
बहुत लम्बी हुई। उसमे उन्होंने साहब के अनेक प्रमाद सप्रमाण सिद्ध किये। इस पर दोनों में बहुत वाद-विवाद हुआ। जब नेस्फ़ोल्ड साहब प्रत्यक्ष मिले तब पण्डितजी ने, अनेक प्रामाणिक अँगरेज़ी ग्रन्थ उनके सामने रखकर, अपने पक्ष का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि जहाँ-जहाँ हमने भ्रम बतलाया है वहाँ-वहाँ या तो आप दोषी हैं या आपके पूर्ववर्ती ग्रन्थकार। दोनों निर्दोष नहीं हो सकते। यह झगड़ा फैसले के लिए ग्रिफ़िथ साहब के पास गया। उन्होंने पण्डितजी का पक्ष सही और नेस्फ़ील्ड साहब का पक्ष ग़लत बतलाया!
एक बार पण्डितजी ने स्वयं ग्रिफ़िथ साहब के लेख मे व्याकरण-सम्बन्धिनी एक शङ्का की। यह शङ्का वाल्मीकि-रामायण के अनुवाद मे, एक जगह, उनको हुई थी। परन्तु इसका जो समाधान ग्रिफ़िथ साहब ने किया उससे पण्डितजी को पूरा-पूरा सन्तोष हो गया। ग्रिफ़िथ साहब पण्डितजी पर बहुत प्रसन्न थे; पण्डितजी पर उनकी पूरी कृपा थी। जिस समय नीलगिरि मे ग्रिफिथ साहब वेदों का अँगरेज़ी अनुवाद करते थे उस समय, कभी-कभी, पत्रद्वारा, अनुवाद के विषय में वे पण्डितजी से सलाह लेते थे।
[ जूलाई १९०५
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