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पण्डित मथुराप्रसाद मिश्र


ऊपर छिड़ककर वे धोये हुए कपड़े पहनते थे और फिर पुस्तकावलोकन मे मग्न हो जाते थे। अनन्तर सायंसन्ध्योपासन करके फिर भी वे पुस्तक हाथ में ले लेते थे। रात को वे केवल दूध पीते थे। यह दिनचर्या उनकी बराबर ३२ वर्ष तक बनी रही। परन्तु उनके एक विद्यार्थी का कहना है कि पण्डितजी भ्रमण के लिए भी जाया करते थे और शाम को लोगों से मिलते भी थे। वे यह भी कहते हैं कि सवेरे मिश्रजी केवल जलपान करके कालेज जाते थे; भोजन वे नित्य सायङ्काल ही करते थे।

पेंशन लेने पर पण्डितजी की दिनचर्या बदल गई थी। उस समय वे सबेरे उठकर गड्डास्नान करते थे। फिर गायत्री का जप। गीता-पाठ और तर्पण इत्यादि करते ११ बजते थे। तब वे अपने हाथ से भोजन बनाते थे। कभी-कभी वे महीनों तक केवल दूध पीकर रह जाते थे। दोपहर से चार बजे तक वेदान्त का विचार करते थे; फिर लोगो से मिलते थे। सायड्काल, सन्ध्योपासन के अनन्तर, वे फिर कुछ जप इत्यादि करते थे। ८ बजे वे दूध पीते थे। तब एकान्त मे बैठकर वे माला फेरते थे। रात को १० बजे वे सोते थे। इस प्रकार १६ वर्ष तक अपनी दिनचर्या रखकर, १८ नवम्बर १८९७ ईसवी को, ७२ वर्ष की उम्र मे, काशी मे, गङ्गा के तट पर, उन्होंने शरीरत्याग किया। उस दिन उनके सम्मान मे बनारस- कालेज बन्द रहा।