कोविद-कीर्तन
१——वामन शिवराम आपटे, एम० ए०
आपूर्णश्च कलाभिरिन्दुरमलो यातश्च राहोर्मुखम्।
——मालतीमाधव
इस ओर के शिक्षित पुरुषों में से जिन्होंने किसी स्कूल अथवा कालेज में शिक्षा पाई है वे तथा संस्कृत से प्रेम रखनेवाले अन्य लोग भी आपटेजी से अवश्य परिचित होंगे। आपटेकृत "संस्कृत-गाइड" और "संस्कृत-अँगरेज़ी" तथा "अँगरेज़ी-संस्कृत" कोश इत्यादि ग्रन्थ इतने प्रसिद्ध हो रहे हैं कि प्रत्येक विद्या-रसिक के पुस्तक-संग्रह अथवा पुस्तकालय में उनको सादर स्थान दिया गया है। कुटिल काल ने ऐसे लोक-विश्रुत विद्वान की वही गति की जो भवभूति की शिरोलिखित उक्ति में दिखलाई गई है। षोडश कलाओं से परिपूर्ण चन्द्रमा का ग्रास राहु ने कर लिया। वामनराव को भी, विद्या की पूर्ण कलाओं से विभूषित होते ही, काल ने अपनी कुक्षि में सन्निवेशित कर लिया। उनका पूर्ण अभ्युदय होते ही वे इस नश्यमान संसार की असारता का उदाहरण हो गये।