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कोविद-कीर्तन

शास्त्रीजी बड़े ही उद्भट लेखक थे। उनकी सबसे अधिक प्रशंसा उनके ग्रन्थ लिखने के कौशल की है। परन्तु वे केवल लेखनी ही का परिचालन न करते थे; उनकी उद्योग-परम्परा भी प्रशंसनीय थी। उद्योग के बिना लेखन-कौशल अथवा वाचालता व्यर्थ है। विलायत के प्रसिद्ध वक्ता बर्क ने कहा है कि "क्रिया[१] वह भाषा है जिसके अर्थज्ञान में कभी भूल ही नहीं होती"। शास्त्रीजी की क्रिया के प्रत्यक्ष फल एक नहीं अनेक इस समय दृग्गोचर हो रहे हैं, परन्तु खेद इस बात का है कि उनका उपयोग करने के लिए इस समय वे नहीं हैं। उनके प्रचलित समाचारपत्र, "केसरी" और "मराठा", बड़ी ही योग्यता से अपने देश की सेवा कर रहे हैं। उनका "न्यू इँगलिश स्कूल" इस समय कालेज हो गया है। उनकी "चित्रशाला" में प्रतिवर्ष नये नये मनोरम चित्र बनते हैं और सुलभ होने के कारण सर्वसाधारण मनुष्यों के भी कमरों में स्थान पाते हैं।

विष्णु शास्त्री के ग्रन्थों में "निबन्धमाला" और संस्कृत कविपञ्चक मुख्य हैं। "निबन्धमाला" के सब ८४ अङ्क हैं। उन सबकी पृष्ठसंख्या अष्टपत्री १२०० से भी अधिक है। इन ८४ अड्कों में जितने निबन्ध हैं प्रायः सभी अच्छे हैं। शास्त्रीजी के विषय-प्रतिपादन करने की पद्धति ऐसी अद्भुत और उनकी भाषा ऐसी मनोरम है कि औरो को तो बात ही न्यारी है, उनके


  1. *Action is the language that never errs––Burke.