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वामन शिवराम आपटे, एम॰ ए॰

इन पाँचों मित्रों की आत्मा एक थी; शरीर-मात्र पृथक् था। लेख लिखा औरों ने, परन्तु उसका दुष्परिणाम भोगा दूसरों ने! जिस वर्ष यह घटना हुई उसी वर्ष, अर्थात् १८८२ ईसवी में, विष्णु शास्त्री चिपलूनकर इस लोक से चल बसे। इन कारणों से यह शङ्का उत्पन्न हुई कि "न्यू इँगलिश स्कूल" भी अब अस्त हो जायगा। परन्तु ऐसा न हुआ। वामनराव ने ऐसी कार्य-दक्षता दिखलाई कि स्कूल का बन्द होना तो दूर रहा, उलटा उसका उत्कर्ष प्रतिदिन होने लगा।

"न्यू इँगलिश स्कूल" का अध्यापक-वर्ग ऐसा कार्य-पटु, विद्वान्, चतुर और परिश्रमी था कि स्कूल की परीक्षाओं का फल बहुत अच्छा होने लगा और उसकी ख्याति प्रति दिन बढ़ने लगी। इस पाठशाला का यहाँ तक उत्कर्ष हुआ कि १८८५ ईसवी में यह कालेज कर दी गई और "फ़र्गुसन-कालेज" इसका नाम हुआ। तब से वामनराव इस कालेज के प्रधान शिक्षक नियत हुए। भिक्षारत बालक वामन, प्रिन्सपल वामन शिवराम आपटे, एम॰ ए॰, कहलाया जाने लगा।

१८८५ से १८९२ ईसवी तक वामनराव ने "फ़र्गुसन-कालेज" की प्रधानाध्यक्षता बड़ी ही दक्षता से निबाही। उनके प्रयत्न से कालेज की अधिकाधिक उन्नति होती गई। उनकी शिक्षण-पद्धति बहुत ही प्रशंसनीय थी। उनसे उनके छात्र सदा प्रसन्न रहते थे। विशेषतः जब वे संस्कृत के काव्यों और नाटकों की मीमांसा करने लगते थे तब उनके विवेचन से उनके विद्या-