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कोविद-कीर्तन


दो मे से एक ही हो सकता है, दोनों साथ-साथ नहीं हो सकते, तब उन्होंने वकालत छोड़ दी। आपकी विद्याभिरुचि को तो देखिए। रुपये को आपने कुछ न समझा; साहित्य-सेवा और लोकोपकार को बहुत कुछ। आपकी इस लोक-हितैषणा और विद्याव्यासङ्ग को देखकर गवर्नमेंट ने आपको दूसरे दरजे का मुन्सिफ मुक़र्रर करके, १८९२ मे, ग़ाज़ीपुर भेज दिया। वहाँ आप पाणिनि-प्रचार के काम में लगे तो रहे, पर समय कम मिला। इससे अनुवाद का काम बहुत धीरे-धीरे होता रहा। सौभाग्य से, १८९६ मे, आपकी बदली बनारस को हो गई। वहाँ आपको अधिक अवकाश मिलने लगा। अतएव उसके दो ही वर्ष बाद, अर्थात् १८९८ में, आपने अनुवाद-कार्य की समाप्ति कर दी और पाणिनीय व्याकरण का अँगरेज़ी अनुवाद छपाकर आपने प्रकाशित भी कर दिया। आपका यह अनुवाद यूरोप के विद्वानों को बहुत पसन्द आया। यहाँ तक कि उसका कुछ अंश लन्दन-विश्वविद्यालय की एम० ए० कक्षा में पाठ्यपुस्तक निर्दिष्ट हो गया। इससे बढ़कर उसका और क्या आदर हो सकता था? आपने इस ग्रन्थ मे मूल सूत्र और वृत्ति देकर, काशिका के आधार पर, अँगरेज़ी-अनुवाद और व्याख्या लिखी है। इसका मूल्य ४५ रुपया है।

इसके बाद श्रीश बाबू ने भट्टोजी दीक्षित की 'सिद्धान्त-कौमुदी' का भी अनुवाद अँगरेज़ी में किया। यह ग्रन्थ तीन भागों मे प्रकाशित हुआ। इसका भी मूल्य ४५ रुपया है।