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कोविद कीर्तन

है। उसके द्वारा शास्त्रीजी की विद्वत्ता और उनके नाम से हिन्दी के प्रायः सभी प्रेमी परिचित हो गये हैं। वे संस्कृत और अँगरेज़ी दोनों भाषाओं के ज्ञाता थे और मराठी में "निबन्धमाला" नामक मासिक पुस्तक निकालते थे। वे पाठशाला में अध्यापक थे। परन्तु कई कारणों से उनकी "निबन्धमाला" के निकलने में प्रतिबन्ध होने लगा। अतएव दास्यरूपी रजत-श्रृङ्खला उन्होंने तोड़ डाली और स्वतन्त्र होकर देशोपकार करने पर कटिबद्ध हुए। उन्होंने अपने मित्र गोपाल गणेश आगरकर, एम॰ ए॰ और बालगङ्गाधर तिलक बी॰ ए॰ की सहायता से "न्यू इँगलिश स्कूल" नामक एक पाठशाला स्थापित की। वामनराव आपटे भी, विष्णु शास्त्री की भाँति पहले अध्यापक हो गये थे; परन्तु उन्होंने भी सरकारी नौकरी छोड़ दी। उसे छोड़कर वे भी अपने इस मित्रत्रितय के साथी हुए। १८८० ईसवी में यह पाठशाला स्थापित हुई। इसी के साथ "केसरी" और "मराठा" नामक दो पत्र भी निकलने लगे। पहला मराठी में और दूसरा अँगरेज़ी में। "केसरी" में प्रायः विष्णु शास्त्री के लेख निकलते थे और "मराठा" में वामनराव आपटे के। इन पत्रों के ऊपर १८८२ ईसवी में कोल्हापुर के एक प्रतिष्ठित पुरुष ने मानहानि का अभियोग चलाया। उसका फल यह हुआ कि आगरकर और तिलक को कारागार-सेवन करना पड़ा। इस घटना से यह सिद्ध हुआ कि आगरकर, आपटे, तिलक, चिपलूनकर और पाँचवें नाम जोशी––