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१०----राय श्रीशचन्द्र वसु बहादुर

काशी की नागरी-प्रचारिणी सभा ने हिन्दी के शार्ट-हैंड, अर्थात् लघुलिपि-प्रणाली, पर जो पुस्तक प्रकाशित की है उसे जिन्होने देखा है वे श्रीश बाबू को अवश्य ही जानते होंगे। क्योकि यह प्रणाली इन्ही बाबू साहब की कल्पना का फल है। इन प्रान्तो मे रहनेवाले सैकडो महाशय ऐसे हैं जो मन ही मन अपनी विद्वत्ता पर गर्व करते हैं, पर उनकी विद्वत्ता अँगरेज़ी लिखने, अँगरेजी पढने और अँगरेज़ो बोलने ही मे ख़र्च होती है। हिन्दी उनके लिए तृणवत् त्याज्य है। इस दशा मे वडग्-भाषा-भाषी श्रीशचन्द्र वसु के द्वारा हिन्दी की लघु-लेखन-पद्धति का आविष्कार होना हिन्दी के लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है, हमारे पश्चिमोत्तर-प्रान्त-वासी हिन्दू विद्वानो के लिए लज्जा की वात न हो तो न सही। जिन्होंने इस क्षिप्र-लेखन-प्रणाली के सम्बन्ध मे वसु महोदय का नाम न सुना होगा उन्होने, यदि वे मामयिक समाचारपत्र पढते रहे होंगे तो, एक और सम्बन्ध में उनका नाम अवश्य ही सुना होगा। हमारा मतलब बनारस के उस बिरादरीवाले मुकदमे से है जिसमे श्रीयुक्त बाबू गोविन्द-दास मुद्दई थे और जिसमे डाक्टर गङ्गानाथ झा और पण्डित शिवकुमार शास्त्री आदि बड़े-बड़े विद्वानो ने बड़ी ही मार्के की गवाहियाँ दी थीं। यह मुकद्दमा बनारस मे, श्रीश बाबू ही