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कोविद-कीर्तन


सर्व-साधारण जन उसे बहुत पसन्द करते हैं। उसके लेख भी बड़े मार्के के होते है। उसके द्वारा बडी निर्भीकता से सत्य तथा न्याय का पक्ष-समर्थन किया जाता है। इस पत्र की सारी उन्नति और सर्वप्रियता के एकमात्र कारण श्रीयुक्त इच्छाराम सूर्यराम देसाई थे। क्योकि वही उसके सर्वस्व थे।

इससे यह न समझना चाहिए कि देसाई महाशय जन्म भर केवल पत्र-सम्पादन ही करते रहे; उन्होने और कुछ किया ही नहीं। वे गुजराती भाषा के आचार्य और बड़े भारी लेखक तथा कवि थे। गुजराती-साहित्य-संसार के वे एक स्तम्भ माने जाते थे। उन्होने अनेक पुस्तकें लिखी और अनेकों का अनुवाद भी किया। अपने गुजराती प्रिंटिग प्रेस के द्वारा उन्होने अपनी तथा औरो की कितनी ही नवीन और प्राचीन पुस्तकें प्रकाशित की।

इच्छारामजी ने पहले पहल सत्यनारायण की प्रसिद्ध कथा का अनुवाद, गुजराती मे, किया। उसके बाद उन्होंने महाकवि होमर के 'इलियड' नामक काव्य का पद्यात्मक अनुवाद अपनी मातृ-भाषा मे किया। परन्तु वह उनकी पसन्द न आया। इसलिए उन्होने उसे जला डाला । फिर उस पुस्तक की बारी आई जो अपने नाम में धर्मात्मा गुजरातियों के लिए जादू का असर रखती है। उसका नाम है---'चन्द्रकान्त' । यह एक धार्मिक ग्रन्थ है। देसाईजी ने पहले सैकड़ों धार्मिक ग्रन्थो का अध्ययन तथा मनन किया। फिर कितने ही सच्चे