पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/११०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०४
कोविद-कीर्तन


की थी कि भूगोल-सहश महानीरस विषय को भी ये सरस बना देते थे। जिस विषय को ये पढ़ाते थे उसमें ये मनोरञ्जकता भी उत्पन्त कर देते थे। इनके विद्या-शिष्य इनके मुख से निकले हुए ज्ञानामृत का पान बड़े ही चाव से करते थे। उनके हृदयों में कभी विरक्ति न उत्पन्न होती थी। इस समय इनके शिष्यों मे हजारों ऐसे हैं जो बड़े-बड़े उच्च पदों पर प्रतिष्ठित हैं। वे सब जोशीजी के अप्रतिम शिक्षण-कौशल की हृदय से प्रशंसा करते हैं।

जब से ये सार्वजनिक विषयों की चर्चा में संलग्न हुए और भारतवर्ष की आर्थिक तथा औद्योगिक अवस्था पर इनके महत्त्व-पूर्ण लेख निकलने लगे तबसे इनकी योग्यता का विशेष परिचय सर्व-साधारण को हुआ। इस कारण प्रजा ने इनको गवर्नर की कौंसिल मे अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा।

हम लोग दस-पॉच अड्कों को देखकर घबरा जाते हैं। दो-चार बड़ी-बड़ी संख्याओं को पास पास देखकर तो उन्हें दुबारा देखने को जी ही नहीं चाहता। हिसाब से यों भी लोगों को बहुत कम प्रेम होता है। फिर कही यदि करोड़ों तक की सैकड़ों संख्याओं को जोड़ने, अथवा उनसे कोई निष्कर्ष निकालने की ज़रूरत आ पड़े, तो यही जान पड़ता है कि सिर पर कोई बहुत बड़ी आफ़त आ गई। परन्तु जोशीजी की चित्तवृत्ति की विचित्रता को देखिए। इनको ऐसी ही बातो से प्रेम था। और, प्रेम भी ऐसा वैसा नही---उत्कट प्रेम था।