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कोविद-कीर्तन

गणित और संस्कृत पर बड़ा अनुराग था। इन विषयों में वे अपने सहपाठियों की सहायता करते थे और उनको प्रसन्न करके उनकी पुस्तकें माँगकर अपना काम चलाते थे। पुस्तकों की भी भिक्षा! वस्त्र की भी भिक्षा!! अन्न की भी भिक्षा!!! भिक्षा ही पर उनका जीवन अवलम्बित था। ऐसी विपन्न दशा में रहकर भी वामनराव ने बड़े परिश्रम से विद्याध्ययन में चित्त लगाया। वे इतने कुशाग्र बुद्धि थे कि अपनी कक्षा में उनका सदैव उच्चासन रहता था। वामनराव को, अपने सहाध्यायी लड़कों को संस्कृत और गणित सिखलाते देख, उनके प्रधान शालाध्यापक ने उनसे कहा था कि "वामन! तू एक प्रसिद्ध अध्यापक होगा!" यह भविष्यद् वाणी सत्य निकली।

१८७३ ईसवी में वामनराव एन्ट्रन्स (Matriculation) परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। उस समय उनका वय केवल १५ वर्ष था। इस परीक्षा में उन्होंने, संस्कृत में, ऐसी प्रवीणता दिखलाई कि उनको २५ रुपये की छात्रवृत्ति मिली। इस समय उनकी, अपनी चिर-परिचित भिक्षावृत्ति को, नमस्कारपूर्वक, विदा करना पड़ा। तदनन्तर वामनराव ने डेकन कालेज मे प्रवेश किया और १८७५ में एफ़॰ ए॰, १८७७ में बी॰ ए॰ और १८७९ में (२१ वर्ष के वय में) एम॰ ए॰ में उन्होंने उत्तीर्णता प्राप्त की। जिस वर्ष वे एफ॰ ए॰ की परीक्षा में सफल हुए उस वर्ष से उनको कई छात्र-वृत्तियाँ मिलने लगीं। एम॰ ए॰ की परीक्षा में वामनराव ने ऐसी योग्यता