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डॉ. सैम पित्रोदा की टिप्पणियां
 

ध्यान केन्द्रित किया और लोगों को यह बताया कि गांधीजी के विचार, मानवजाति के पूरे इतिहास के वनिस्पत, आज के संदर्भ में ज्यादा ज्यादा प्रासंगिक हैं।

जब मैं आपको दूसरी किताब के बारे में बता रहा था तो मैं कुछ भूल गया। मैं दुनिया की पुनर्रचना पर किताब लिख रहा हूं। हमने जो दुनिया रची है वह आज बिलकुल पुरानी हो चुकी है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमरीका ने यू.एन, विश्व बैंक, नाटों, । आई.एम.एफ, जी.डी.पी, जी.एन.पी, व्यक्ति की वार्षिक आय, भुगतान संतुलन, लोकतंत्र, मानवाधिकार, पूंजीवाद, उपभोग और युद्घ आदि जैसे संस्थओं और सिद्धांतों का गठन किया।

इन सभी चीजों का अब कोई अर्थ नहीं है। जी.डी.पी अब कुछ महत्व का नहीं है। लेकिन हम आज भी इसका अनुसरण करते हैं। आज के सभी प्रकार के मेजरमेंट्स बिग डाटा, क्लाऊड कम्प्यूटिंग, डेटा एनालिटिक्स का लाभ उठा सकते हैं। तब यह संभव नहीं था, इसलिए आपने इसे ‘सकल घरेलू उत्पाद’ कहा (gross domestic product) और सभी लोग भी खोज सकते हैं, और कई छोटी-छोटी सूचनाओं तक पहुच । सकते हैं, क्योंकि आपके पास विश्लेषण करने के लिए बहुत डाटा हैं।

मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि कोई है जो कोर्ट से डाटा लेकर उन्हें वेब पर डाल रहा है। मैं सात साल तक अपने सभी मुख्य न्यायाधीशों से झगड़ा। जब भी किसी नए न्यायाधीश की नियुक्ति होती, तो मैं उन्हें अगले दिन ही कॉल करता और उनके घर पर जाता। हमने चाय पी और उन्हें विश्वस्त करने की कोशिश कि न्याय प्राप्त करने में 15 साल क्यों लग जाते हैं? हम सभी रिपोर्टों को कम्प्यूटराइज़ क्यों नहीं कर सकते हैं और सिर्फ 3 साल में हीं न्याय क्यूँ नहीं दिला सकते हैं? वे कहते, “बिल्कुल सैम, मैं आपसे सहमत हूँ; पिट्रोदा जी, हम सभी आपके साथ हैं, इसे करते हैं, यह विचार शानदार है।” लेकिन इसका बाद कुछ भी नहीं होता।

औसतन हर आठ महीन में दूसरे नए मुख्य न्यायाधीश आते हैं। तो मैं उनके पास दुबारा । जाता और वे कहते, * आप सही कहते हैं, हम यह जल्द ही करेंगे।” सभी अच्छे मनसूबों के साथ यह कहते। उनकी मंशा तो सही होती थी, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाते थे।

भारत में एक कोर्ट केस के निपटान में 15 साल क्यों लग जाते हैं? आपकी विशेषज्ञता के अनुसार यह एक वर्ष में, या दो वर्ष में, या तीन वर्ष में निपटाया जा सकता है। अतः बदलाव के लिए आपको हर स्थान पर आई.टी. का उपयोग करने की जरूरत होगी। आप यहाँ, इस समाज के, पूरे ताना-बाना बदलने के लिए हैं। घर से ऑफिस, पुलिस से कोर्ट, सरकार से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, कृषि और मौलिक तौर पर आपका एकमात्र औजार “सूचना” होगा। सूचना में हुमें, ज्ञान, प्रज्ञता और कर्म जोड़ना होगा और साथ साथ इसके लिए, साहसिक और युवा लोगों को भी जोड़ना होगा।

भारत में आप मुझे या किसी को भी जो संभवतः 45 से अधिक है, खारिज कर सकते हैं। दरअसल उनमें इस दुनिया को संभालने का सामर्थ्य नहीं बचा है। भारत में सभी बीते हुए वक्त की बात करते हैं, भविष्य की बात कोई भी नहीं करता। यहाँ राम के इतिहास की

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