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कोड स्वराज

लगभग उसी समय, जब हम गांधी पोर्टल पर काम कर रहे थे, मैंने कार्ल के काम को देखा था, और हम एक दूसरे से जुड़ गए। कार्ल का यह मिशन था, सरकारी दस्तावेजों से मानकों को लेना और फिर उसे इंटरनेट पर ड़ालना। मैंने सोचा कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन हर बार कार्ल ने ऐसा करने की कोशिश की, उनपर सरकारों द्वारा कोर्ट केस किए गए।

सभी सरकारों का मानना है कि सरकारी मानक, चाहे वह सुरक्षा, अग्नि सेवा (Self-Employed Women 's Association of India), या बिल्डिंग कोड ही क्यों न हों, ये सभी सरकार की संपत्ति हैं। वे कहते हैं कि काले, इन सभी दस्तावेजों को इंटरनेट पर डालकर, बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) के कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं।

जब मैंने इसके बारे में सुना, तो मैं और अधिक उत्तेजित हो गया, क्योंकि मेरे लिए, यह सत्याग्रह का एक गांधीवादी तरीका था। मैंने कहा, “कार्ल, हमें यह लड़ाई लड़ने की। आवश्यकता है। वे कानूनी तौर पर सही हो सकते हैं, लेकिन वे नैतिक तौर पर गलत हैं।”

[हर्षध्वनि]

वास्तव में ये सभी मानक लोक सुरक्षा और लोक हित के लिये हैं। फिर आप आम आदमी को इन मानकों तक पहुंचने की अनुमति क्यों नहीं देते हैं? मुझे अपने घर में बिजली की वायरिंग के मानकों को क्यों खरीदना पड़ता है? जबकि मुझे पता है कि खराब तारों से आगजनी का खतरा हो सकता है?

सरकार आपको ऐसा करने की अनुमति नहीं देती। कार्ल को अमेरिका, जर्मनी, भारत और आप कह सकते हैं पूरे विश्व में अदालती मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है।

हमारा काम मुख्य रूप से इसके लिए नैतिक आधार पर लड़ाई लड़ना है कि यह सार्वजनिक जानकारी है और इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए, और किसी को भी सरकार के इन पुराने, अप्रचलित (obsolete) कानूनों को नहीं मानना चाहिए।

जब मैं, इंटरनेट और इंटरनेट के सामर्थ्य को देखता हूं, तो मुझे लगता है कि इंटरनेट द्वारा उपलब्ध अवसरों और ज्ञान के क्षेत्र में हमारी सोच बहुत पिछड़ी है। भारत में अनेक अवसर पर मैने कहा कि हमारे पास 19वीं शताब्दी की मानसिकता (mentality) है, 20वीं सदी की प्रक्रियाएं (processes) हैं, और 21वीं सदी के सूचना युग (information age) के सुअवसर हैं।


कार्ल, इन मानकों को जनता की नजर में लाने का प्रयास कर रहे हैं जिससे की क़ानून को बदला जा सके।

जहां भी आप देखते हैं, आप पाएंगे कि सभी प्रक्रियाएं पुरानी हैं। हम यह नहीं पाते हैं कि कोई भी इन पुरानी प्रक्रियाओं के विरुद्ध खड़ा होकर कह रहा हो कि “ इसे बदलना चाहिए

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