पृष्ठ:कोड स्वराज.pdf/१६२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

कोड स्वराज

और ओपन प्रोटोकॉल के माध्यम से बदला था। सभी यह जान सकते हैं कि इंटरनेट कैसे काम करता है यदि वे प्रोटोकॉल के विवरण (स्पेसिफिकेशन्स) पढ़ने के लिए समय निकालें जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।

इंटरनेट कोई अन्ततोगत्वा होने वाला निष्कर्ष नहीं था। वर्ष 1980 में जब मैंने इंटरनेट पर काम करना शुरू किया तो उस समय विभिन्न तरह के नेटवर्क थे। एक नेटवर्क को, इन्टरनेशनल आर्गनाइजेशन फार स्टैन्डर्डाइजेशन और बड़े कॉर्पोरेटों और सरकारी संगठनों की सहायता से विकसित किया जा रहा था। इसे ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन । (ओ.एस.आई) कहा जाता था और उन्होंने जो मॉडल अपनाया था वह वैसा ही था जैसा मॉडल हम आज भी मानक निकायों को प्रयोग करते हुए देखते हैं। प्रोटोकॉल की विशेषताओं को नियंत्रित प्रक्रिया के अंतर्गत तैयार किया गया था। इसके विवरण के दस्तावेज काफी मंहगे थे और उनकी प्रतिलिपि, एक निजी संस्थान द्वारा दिये गये लाइसेंस के बिना, नहीं बनाई जा सकती थी।

मैं उस समय कंप्यूटर नेटवर्क पर, पेशेवर रेफरेंश पुस्तकें लिख रहा था और उसके लिये हमें बहुत सारे “ओ.एस.आई” के दस्तावेजों खरीदना पड़ता था। मैंने, कंप्यूटर ट्रेड के मैंगज़ीनों के लिए कॉलम भी लिखे थे। मेरे अधिकांश कॉलम इस संर्दभ में लिखे गए हैं कि कैसे मानकों की उच्च कीमत, और बंद विकास की प्रक्रिया (क्लोज़ड प्रोसेस) इस नई प्रौद्योगिकी की अन्तर्निहित संभावनाओं के प्राण हर ले रही है।

इसी बीच, इंजीनियरों के एक अनौपचारिक ग्रुप ने इंटरनेट इंजिनीयरिंग टास्क फोर्स (आई.ई.टी.एफ) का गठन किया। यह समूह स्वयं-आयोजित था और इसके सभी प्रोटोकॉल ओपन थे और नि:शुल्क उपलब्ध थे। ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह एक ‘काम करते कोड (वर्किंग कोड) के सिद्धांत पर काम कर रही थी। जिसका मतलब यह था कि आप समिति के बैठक में, इंटरनेट संचालन के किसी भी पहल के मानकीकरण के लिये तब तक प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं जब तक कि आपने उसे अपने काम करते कोड के द्वारा कार्यांवित नहीं कर लिया है, उदाहरण के लिए आप ई-मेल हेडर के फारमेट का सुझाव तब तक नहीं प्रस्तुत नहीं कर सकते जब तक आपने ई-मेल हेडर के सुझाव को कोड करके अमल न कर दिया हो। इंटरनेट प्रटोकॉल उन चीजों पर आधारित होते थे जो वास्तव में काम करते थे, जबकि ओ.सी.आई कॉर्पोरेट के एजेंडों पर निर्भर होती थी।

इंटरनेट प्रोटोकॉल पर मेरा योगदान कम है लेकिन मैंने आई.ई.टी.एफ पर बहुत समय दिया और आखिरकार इंटरनेट के प्रशासन प्रणाली के मामलों पर काम किया। मैं उस रैडिकल समूह का हिस्सा था, जो इसके प्रशासन को निपुणता से नियंत्रित कर, एक बौट्टम-अप मॉडल की ओर ले जाते गये और इसके प्रशासन प्रणाली को सरकारी प्रायोजकों (स्पोनससी के नियंत्रण से बचाते रहे, जैसे कि अमेरिका रक्षा मंत्रालय और वह अन्य एजेंसियां, जो आज भी हमारे उपर कई पर्यवेक्षी (सुपरवाइजरी) निकायों, जैसे इंटनेट आर्किटेक्चर बोर्ड की स्थापना कर रहे हैं।

हुम मूल सिद्धांतों पर अडिग रहे जैसे कि बैठकों में भाग लेते व्यक्ति अपने विचारों को प्रकट करते हों, न कि अपने नियोक्ताओं के। इनमें कोई भी व्यक्ति भाग ले सकता था, वहां कोई

154