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कोड स्वराज

[कार्ल मालामुद] इलैक्ट्रॉनिक और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार इस योजना का प्रायोजक है। मैंने इस डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया पर ध्यान दिया है और मैंने उसे करीब से देखा है। मुझे दो चीजें दिखी। यह अच्छी तरह से उपलब्ध नहीं थी और इसे सर्च करना भी मुश्किल था। इसका सर्वर (server) काफी धीमा था। लगातार डी.एन.एस. गायब हो जा रहे थे। यदा-कदा सर्वर डाउन होते रहते थे। इसलिए मैंने इसे कॉपी कर लिया और ऑनलाइन कर दिया। मैंने उसे बहुत ध्यान से देखा। डाटाबेस में कॉपीराइट से संबंधित कुछ मामले थे। वे काफी लापरवाह तरीके के थे, लेकिन इनका मेटाडाटा खराब था। उनके शीर्षक गलत थे। स्कैनिंग की प्रक्रिया भी थोड़ी लापरवाह तरीके से की गई थी। उसके पृष्ठ तिरछे थे और कुछ गायब भी थे या आधी पुस्तक नहीं थी, या इसकी सूक्ष्मता (resolution) काफी कम थी।

हमने एक कॉपी भर बनाई है, और उसे केवल बेहतर बनाने के लिए इंटरनेट में डाला है। हमने उसे इंटरनेट आर्काइव में डाल दिया है। एक महीने में इसे लगभग दस लाख लोगों ने देखा। इसे देखने के लिये लोगों की संख्या बढ़ने लगी। हमें कुछ नोटिस भी मिले। ऐसा बड़े स्तर के संस्थाओं में होता है। आपको कुछ नोटिस मिले और आपने उन पर अपनी प्रतिक्रिया दी। आपने कहा, “ठीक है, मैं उसे हटा देता हूँ”

[अनुज श्रीनिवास] कुछ मामलों में, इनका पालन करके आप खुश हैं।

[कार्ल मालामुद] हां, बिल्कुल। यदि कोई व्यक्ति कहता है कि पुस्तक कॉपीराइट है, तो यह कोई समस्या नहीं है। हम लोग इसे तुरंत हटा देंगे। यह कोई बड़ी बात नहीं है। जब आप करोड़ों या लाखों पुस्तकों जैसे ब्रुवस्टर काल्हे इंटरनेट आर्काइव पर डालते रहते हैं, तो गलतियां तो होती ही हैं।

सरकार काफी घबराई हुई थी क्योंकि यह डाटा अधिक मात्रा में इंटरनेट पर दिखाई दे रहा था और उन्हें कुछ लोगों से नोटिस भी प्राप्त हुए, जिसमें वे कह रहे थे, “हे भगवान!, उनके पास मेरी किताब है। उन्होंने सारे डाटाबेस को बंद कर दिया था। उन्होंने हम से सारे डाटाबेस को बंद करने को कहा। मैंने कहा, “नहीं, नहीं, हम ऐसा नहीं करने वाले हैं।” उन्होंने कहा, “ठीक है, कम से कम सन 1900 के बाद की सभी पुस्तके हटा दें।”

[अनुज श्रीनिवास] इस संग्रह में किस प्रकार की पुस्तकें हैं?

[कार्ल मालामुद] यह 50 विभिन्न भाषाओं का शानदार संग्रह है। जिनमें से आधी पुस्तकें अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच आदि जैसी रोमानी भाषाओं में हैं। इसमें ऐतिहासिक पुस्तकें, कथेतर (नान-फिक्शन) साहित्य, भारत का राजपत्र आदि शामिल हैं। इसमें सभी राज्यों के राजपत्र और संस्कृत भाषा में 50,000 पुस्तकें है। गुजराती भाषा में 30,000 पुस्तकें भी हैं। मुझे इन आंकड़ों की सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन ये दस हजार से अधिक हैं। दस हजार पुस्तकें पंजाबी भाषा में हैं। पुस्तकें तिब्बती भाषा में भी है। ये पुस्तकें हजार वर्ष पुरानी हैं। यह शानदार बात है कि ऐसा अनोखा संग्रह दुनिया के किसी भी देश में उपलब्ध नहीं है। मुझे विश्व भर के भारतीय विद्वानों से पत्र प्राप्त हुए हैं, जिसमें उन्होंने लिखा है “ओह भगवान, यह तो बहुत बड़ा संग्रह है।”

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