परिच्छेद) कुसुमकुमारी । ८५ •rawrantrvwar www . . तोस दडेसीढ़ियों के उतरने पर पानी मिला, जिसे देख भैरोसिंह ने कहा,- "बस, अब आगे जाना वेफायदे है। पर हां इतना आप जान लीजिए कि बराबर पानी ही में उतर जाने पर एक जज़ीर मिलेगी, उसे बैंचने पर एक दर्वाज़ा खुल जायगा और उस रास्ते से कुए के अन्दर पहुंचना होगा, फिर वहां जाने पर द_ज़ा आप से आप बन्द हो जायगा . यदि कोई कुएं के अन्दर से यहां आना चाहे तो उसे भी कुएं के ओर वाली जजीर को उसी तरह बँचना चाहिए, जैसे कि इधर से जाने के समय खेंचना मैने अभी बतलाया निदान, यह सब देख-सुन-कर वे सब उधर से वापस आकर उसी चौखंटी कोठरी में पहुंचे और भैरोसिंह ने उधर का दर्वाजा उसी रीति से बन्द करके बाईं ओर, अर्थात् पच्छिम और शाला दाजा भी उसी भांति खग्ला और सब कोई उसके अन्दर घुसे। कुछ दूर सीधे जाकर फिर कई बार दाहिने-याएं धूमने पर सुरग खतम हुई। तब भैरोसिंह ने वहांकी दीवार में भी घंसे मारकर और छेद मे ताली लगाकर उसी तरह एक राह पैदा की, जिस तरह का हाल ऊपर लिखा जा चुका है। दाज़ा खुलते ही सीढ़ियां नज़र आई और एक एक करके तीनों आदमी ऊपर चढ़ गए। ऊपर एक छोटी सी नंग कोठरी फ़कत दोहो हाथ ऊत्री थी। उसमें पहुंचकर बैठे बैठे भैरोसिंह ने छत में लटकतीहुई एक जज़ीर को झटका देकर बैंचा, जिससे एक पटाखे की सी आवाज़ हुई और साथ ही एक पत्थर की पटिया नीचे की तरफ़ झूल पड़ो, तब भैरोसिंह ने खड़े होकर उसके बाहर सिर निकाला। वहा पर गांगीनदी के किनारे धोबी लोग कपड़े धोया करते थे। सो एक धोबी उसी टीले पर कपड़े फैलाकर एक इमली के पेड़ की छाया में बैठा हुआ था। बस,ज्यों ही उसने कत्र से मुंह निकालकर भैरोसिंह को बाहर की ओर झांकते देखा, त्यों ही बड़े जोर से चीख मार और टोले से लुढ़ककर वह नीचे नदी में जा गिरा ! उसको यह हालत देख उसकी जोरू भी दौड़ी, पर ज्यों हा कत्र से झांकते हुए भैरोसिंह पर उसकी नज़र पहुंची, त्यों ही उसकी भी दुरो दशा होगई अर्थात् वह भी चीख मारती दुई लुढककर टोले __ के नीचे आ गिरी फिर तो वे दानों जरा सम्हल और उठकर ऐस
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