पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/८०

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परिच्छेद ) कुसुमकुमारी निदान, आधे घंटे के अंदर पैर दावने वाली खवासिन ने छुट्टी पाई और पंखेवाली अपनी जोड़ीदारिन को जगाने चली मई। इस समय बसन्तकुमार को नीद आ गई थी और कुसुम की भी आखें ढपी जाती थीं। इसी अवसर में भैरोसिंह ने जाकर कुसुम के कान में धीरे से कहा,-'भैरोसिंह !” . यह सुनते ही कुसुम चिहुंक उठी, और कुछ बोला ही चाहती थी कि भैरोसिंह ने झुककर धीरे से कान में कहा,-"चुप रहिए, बहुन जरूरी बात है, जरा चुपचाप धीरे से उठकर अकेले में चलिए" कुसुम भैरोसिंह की कहां तक कदर करती थी, या भैगेंसिंह कुसुम को कैमा मानता था, यह बात हम ऊपर के परिच्छेदों में लिख आए हैं। इसी सबब से भैरोसिंह का इशारा पाते ही कुसुम धीरे से उठ बैठी और बोली,-"ऐसा है तो तुम हम्मामवाली कोठरी में चलो, मैं अभी आई। यह सुनकर वह उस ओर चला गया, और कुसुम धीरे से पलग के नीचे उतरी, पर बसन्त को नीद ने ऐसा चांपा था कि उसे कुसुम का उठना न जान पड़ा। इतने ही में पंखा हुँचनेवाली दूसरी मजदूरनी भी आ पहुंची, उसे देख कुसुम बोली कि "तू पंखा हांक, मैं ज़रूरी काम से निपट कर अभी आती हूं।" और फिर वह हम्माम-घर में पहुंची। फिर पाय घंटे तक भैरोसिंह ने कुसुम के साथ क्या क्या बातें की, यह तो समय पर मालूम हो ही जायगा, पर उस समय ज़ाहिरा नौर से देखने में यही आया कि कुसुम घबराई हुई बसन्तकुमार की सेज के पास पहुंची और चट-पट उन्हें जगाकर अपने साथ लिये हुई उसी हम्मामवालो कोठरी में पहुंची। उन दोनो के पहुंचने पर मैरासिंह ने हम्माम-घर का दाज़ा भीतर से लगा लिया और फिर मोमबत्ती जलाकर उस कोठरी के बीचोबीच जो हौज बना हुआ था, उसकी टोंटी को ऐसे ज़ोर से ऊपर बँचा कि कोठरी के संगमर्मर के फर्शवाली एक चौखंटी पटिया हलकी आवाज़ के साथ नीचे की ओर झूल गई और उसमें उतर जाने लायक सीढ़ियों नजर आई। तब भैरोसिंह ने उन दोनों को उतर जाने का इशारा किया और जब वे दोनो उसके अन्दर चले गए, तब भैरोसिंह ने उस टोंटी को भरजोर नीचे की ओर दवाया जिससे सीढी वाली, अर्थात् सुरंगवाली पटिया ज्यों की स्यों घराबर हागई।