पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/७९

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.. स्वगायकुसुम ( सईसपा To तेईसवां परिच्छेद, यह क्या? 'साधौ सदैव साधुत्वं, शठे शाट्य समाचरेत् । ये कुर्वन्ति यथा कर्म, भुञ्जन्ते ते फलं तथा ॥ (व्यासः) FFARNह बात हम ऊपर लिख पाए हैं कि बसन्तकुमार के र मारनेवाले करीमवत्स और झगरू उस्ताद की गिर- रफ़्तारी के लिये वारंट निकाला गया गया था। बसन्त कुमार के आराम हो जाने पर भैरोसिंह एक महीने की छुट्टी लेकर अपने घर गया। उसका घर आरे जिले के बक्सर कस्बे में था। लोगों ने तो जाना कि भैरोसिंह घर गया, पर, नही, वह घर न जाकर किसी दूसरी ही धुन में कहीं पर अटक गया। पद्रह दिन के बाद एक दिन वह चुपचाप आधी रात के समय कुसुम के बाग की दीवार लाँधकर अपने को अँधेरी रात की स्याह चादर से छिपाए हुए धीरे धोरे उस कमरे की दीवार से जा चिपका, जिधर साएबान के नीचे कुसुम अपने प्यारे के साथ लेटी हुई धीरे धीरे प्यार की बातें कर रही थी। भैरोसिंह को उम्मेद् न थी, कि वह इतनी रात तक कुसुम को जागती हुई पावेगा. पर उसके भाग्य से अभी तक कुसुम जाग रही थी। भैरोसिंह चाहता तो तभी उससे मिल लेता, पर किसी खास वजह से वह इस तरह चोर की भांति छिपकर आया था कि सिवाय कुसुम के और किसीका सामना करना उसे मंज़र न था; और यदि केवल वसन्तकुमार ही जागताहो, ऐसा नथा, बरन एक स्वचासिन कुसुम का पैर दाब रही थी और दूसरी फरांशो पंखा चला रही थी। यही कारण था कि भैरोसिंह कुसुम के आगे न जा सका। वह खड़ा बड़ा उकता रहा था, जिसकी उतावली से यह साफ जाहिर होता था कि इस वक्त वह अपने बहुमूल्य समय में से एक पलमर भी नहीं पर्याद कर सकता।