परिच्छेद ] कुसुमकुमारी -ANNA/roor .. ... ews- बसन्त,-"नही, प्यारी ! मैं तहेदिल से इस बात को सकारता हूं कि चाहना तम्हारे ही हिस्से में पड़ा है।" कुसुम,---" लेकिन, निबाहना तो तुम्हारे ही हाथ है ! " बसन्त,-"बेशक, और मैं तो इस बात की कसम ही खा चुका हूं!" कुसुम,-" आह, वह बात अब याद आई!" बसन्त,-" उसे मैं भूला कब था?" कुसुम,-" तो फिर इतना प्रपंच क्यों रचा था!" बसन्त,-" सिर्फ तुम्हें जलाने के लिए!" कुसुम,---" ऐं, यह बात है ! बसन्त,- बेशक, यही बात है !” कुसुम.--" तो मुझे जलाने से तुम्हें कुछ सुख मिलता है !" बसन्त,-" सुख-दुःख की बात तो मैं नहीं जानता, लेकिन, हां-इतना तो मैं ज़रूर कहूँगा कि जैसा मज़ा मुझे जलाने से तुम्हें मिलना होगा.-तुम समझ लो कि तुम्हें जलाने से वैसा ही मजा मुझे भी मिलता होगा!" कुसुम,-" आह, तुमने फिर वही शर निकाला ! खैर, बत- लाओ तो सही कि मैंने तुम्हें क्या जलाया?" बसन्त,-" बतलाऊं?" कुसुम,-" ज़रूर बतलाओ!" बसन्त,-"देखो, मैं अभी. कुछ देर पहिले तुमसे यह बात कह आया हूँ कि, मैं यह बात साबित करदूंगा, कि तुम मुझे इस कदर जलाया करती हो कि उसकी ज्वाला से बचने के लिए मैंने तुमसे दूर ही रहना अखतियार किया है ! कुसुम,-"तो, उस जलानेवाली बात को तुम साबित तो करो?" बसन्त,-"कहूं?" कुसुम,-" कहो! वसन्त,-"अच्छा, सुलो-" कुसुम,-" कुछ कहोगे भी!" वसन्त,-" अच्छा, अब सुनो, प्यारी! घी और आग का एक साथ रहना किसको हानि पहुंचाता है ? " कुसुम,-"घी को।" बसन्त, " तो बस, अब तुम्ही इन्साफ़ करो कि तुम्हारे साथ रहने से मुझे अलग पहुचती है या नहीं.
पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/७२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।