संस्करण की कुसुमकुमारी" पढी है वे यदि इस दूसरे संस्करण की कुसुमकुमारी" पढेगे तो उनके आनन्द की सीमा न रहेगी और वे यह देखकर बहुत ही चकित होंगे कि, 'अब इस द्वितीय संस्करण का "कुसुमकुमारी" उपन्यास एकदम बिल्कुल नया हो गया है !!!" इसके पहिले संस्करण में जो जो त्रुटियां रह गई थी, वे सब इस दूसरे संस्करण में दूर कर दी गई हैं और यह उपन्यास इस दूसरे संस्करण में इतना सुधारकर और बढ़ाकर छापा गया है कि अब यह उपन्यास "सर्वाङ्गसुन्दर" हो गया है। इसलिये हमारा अनुरोध है कि जिन रसिकों ने पहिली बार छपे हुए "कुसुमकुमारी" उपन्यास को पढ़ा हो, वे फिरसे इस दूसरी बार के छपे हुए "कसुमकुमारी" उपन्यास को ज़रूर ही पढ़ें तब उन्हें यह बात जान पड़ेगी कि, 'पहिले संस्करण में क्या क्या कमी इस उपन्यास में रह गई थी, और अब यह कैसी खूबसूरती के साथ सब कमी को दूर करके छापा गया है !!!'
सबसे बढ़कर तो अबकी बार यह बात हुई है कि इस उपन्यास में "कुसुमकुमारी" का एक मनोहर चित्र भी दे दिया गया है। एक रुपया तो क्या-इस चित्र पर लाख रुपया न्योछावर कर दिया जा सकता है!!!
अन्त में एक बात और लिखकर हम इस द्वितीय संस्करण की भूमिका को समाप्त करते हैं, वह यह है, कि अब तक तो हिन्दी- वाले ही बङ्गला की चोरी किया करते थे, पर अब बङ्लावाले भी हिन्दी की चोरी करने लगे हैं ! बात यह है कि बङ्गला में एक बहुत ही छोटासा-केवल डेढ़ या दो फारम का कुसुमकमारी उपन्यास देखने में आया है, जिसपर दाइटिलपेज नदारत है ! यह बङ्गला का कुसुमकुमारी उपन्यास उस कुसुमकुमारी उपन्यास की छाया पर लिखा गया है, जो, “विज्ञवृन्दावन" नामकमासिकपत्र में छपा था!
अस्तु, जो कुछ हो, इससे हमारी कोई हानि नहीं है। सम्भव है कि हमने जिस सच्ची घटना का अवलम्बन करके यह "कुसुमकुमारी" उपन्यास लिखा है, बङ्गला-लेखक ने भी उसी घटना का अवलम्बन करके वह उपन्यास लिखा हो! लेकिन लिखावट के दङ्ग का मिल जाना एक अनोखी बात है! अस्तु, रसीले उपन्यास-प्रेमियों से इस द्वितीय संस्करण के कुसुमकुमारी-उपन्याल के एक बार पढ़ने का अनुरोध कर हम अपनी भूमिका सम्पूर्ण करते हैं !
उपन्यास-प्रेमियों का प्रेमी,