पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/६७

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स्वगायकुसुम प्यारे तेरे ध्यान में, मगन रहत मन डूब । प्रगट होइ कब देहुगे, मन-मनसा महबूब।। ५६।। प्यारे तेरे रूप कों, देखन चाहत नैन । देहु दरस मनभावते, बिकल करत मन मैन ॥६॥ प्यारे प्रीति लगाइकै, भली करी दुख दीन । तन मन धन अपनाइ कै, कियो सबै विधि हीन ॥ ६१ प्यारे बिन दिलदार के, प्रीति सराहै कौन । ज्यों तुम पै हौं मरत हौं, त्यों तुम धारत मौन ॥ ६२॥ प्यारे जिय अकुलात है, तापै तुम अब रंज। तो-विन खिलै न सुमन-मन, ज्यों सूरज बिन कंज ॥ ६: प्यारे टूटे मनाहि बरु, दीजै मोहि लौठाय। छोड़ी भीख फकीरनी, वह ठिकरा मिलजाय ॥ ६४ ॥ प्यारे निठुराई करी, भली करी सब खूब । अरु जो चाहौसो करौ, हम तयार महबुब ॥६५॥ प्यारे तजि तिहुं-लोक को, तेरो ध्यान लगाइ। मैन-मंत्र को जपत मन, जोगी-भेस बनाइ॥६६॥ प्यारे बरजोरी लियो, तुम मेरो मन छीन । अब अपनो मन देत नाहि, हाय गजब छल कीन ॥ ६७ । प्यारे प्रीति लगाइ कै, सवै गवाँई साँक। मो-मन सिगरो लेग कै, निज नहिं देत छटाँक ॥ ८॥ प्यारे ऊपर एक है, मन में दूजो आंक। कपटी-जन की रीति यह, ज्यों खीरा की फाँक ॥ ६॥ प्यारे क्यों मुख हेरि कै, दै नैननि की चोट । मन ललचाय दिखाय छवि, दुरि बैठे कित ओट | ७० प्यारे नैना मद्-सरे, तेरे तीरंदाज । तान-बान हनि मारई, सूधे मन-मग आज ॥ १ ॥ प्यारे मेरो मन रम्यो, तुमरे मन सों जाय । तुम द्वैमनवारे भए, मन-बिहीन हम हाथ ! | ७२ ॥ प्यारे नैन उदार सों, बिहसि निहारहु मोहि । काम हमारो होइ अरु, हृदय सराहै तोहि ॥ ७३ ॥ प्यारे अब कित जाहि हाँ. केहि बिधि छाडौं साथ । बिना मोक्ष की मापुही गिकी तिहारे हाय A GH %ARD