रच्छेद.]
"प्यारे तेरी प्रीति को, सरवर सुखद सुबेस।
पै नेही-जन की कबौं, प्यास न मेटत सेस ॥४३॥
प्यारे तेरी चाह को, कूप गही यह टेक।
खैंचत गुन, मन हारिगो, दई बूंद नहिं एक ॥ ४४ ॥
प्यारे छाले परि गये, मन के पायन-माहिं।
तुव-लगि दौरत हारिगो, आदर पायो नाहिं॥४५॥ प्यारे बिन तोसों मिले, गयो धीरहू भागि । कैसे दिल-बारूद में, छिपै इश्क की आगि ॥ ४६॥ प्यारे सुनि यह बात कों, करौ हिये अब गौर । रूप-दुपहरी-छाह कहुँ, ठहरानी इक ठौर ॥४७॥ प्यारे रूप अनूप यह, पाइ करौ जनि मान । सूम समीप न जांचई, जाचक जे मतिमान ४८॥ प्यारे भिच्छा दरस की, भोली पलक पसार । मागत जोगी नैन ये, करु इनकौं सतकार ॥ ४६॥ प्यारे बिरवा प्रेम कों, तुम हिय रोप्यो लाय । सीचत रहियो प्रेम-जल, नेकु नहीं कुम्हिलाय ।। ५०४ प्यारे तोसों मिलन कों, अस जिय आवत मोहि।। पंछी है उडिकै मिलहुँ, कंठ लगावहुँ तोहि ॥ ५१ ॥ प्यारे विकल बिहाल अति, रैन दिना नहि चैन। देह जरावत बिरह, अरु, मनहिं तपावत मैन ॥ ५२ ॥ प्यारे तेरे विरह में, प्रान अधिक अकुलाय । मन तेरे मन सों रम्यों, बिन मन रह्यो न जाय ॥ ५३॥ प्यारे तेरे दरस कों, तरसत प्यासे नैन । तारे गिनत बितीत निसि, देत चैन नहिं मैन ॥ ५४॥ प्यारे तुव-बचनावली, सुधा चहत मम कान । दरसन चाहत नैन जुग, मिलन चहत हैं प्रान ॥ ५५ ॥ प्यारे हाय दुराय मुख, भली दिखाई चाह । तुमरी ऐसी चाह को, भलो भयो निरवाह ॥ ५६ ॥ प्यारे पल-छिन जुग भयो, काटे कटत न रात। हाय कबै घों होइगो, मिलन-अवधि को प्रात ॥५७ ॥ प्यारे मन नुव-नाम की, माला जपत हमेस। छोडि सवै जंजाल फों, रिया फकीरी मेस: ५८