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स्वर्गीयकुसुम

[अठारहवा


लिखने पड़ते हैं न!!! मगर फिर भी अगर आपका हुक्म हो तो मैं खद सिर-आखों के वल आपको मनाने के लिये आऊ ! प्रानप्यार! मुझे आपकी ज़ात से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी बिना- वजह आप अपना पल्ला छुड़ाकर मुझे दूध की मक्खी की तरह दूर करदेगे और मैं तमाम-उम्र आपकी जुदाई की आग में जल-भुनकर खाक हुआ करूंगी ! हाय, प्रियतम ! इसमें आपका कोई दोष नहीं है, अगर कुछ है भी, तो वह मेरी फूटी किस्मत का है कि मुझ बदनसीब को किसी बहाने भी कभी सुख न हो! प्रानप्यारे! हाय! जैसा दुःख मुझे होरहा है, या जो कुछ मेरे दिल पर गुज़र रहा है, सो तो मेरा दिल ही जानता है; या परमेश्वर जानता होगा!बस, इससे ज़ियादह और मैं क्या कहूं? हे प्रिय! ख़त लिखते समय मेरी छाती इसलिये फटी जाती है कि मुझे आपकी खफ़गी का बड़ा डर है क्यों कि मेरा बुरा दिन है कि नहीं ! इसीसे, जो मैं अच्छा भी लिखूंगी तो आप बुरा ही समझिएगा, लेकिन दया करके इतना तो, भला, बतला दीजिए कि मेरा क्या कसूर है और आपकी नाराजी का सबब भी क्या है ? प्यारे ! प्यारे! ! प्यारे !!! आपकी भुलाई हुई, एक बदनसीव चाहनेवाली," हाय रे, प्रेम! तू बड़ा भारी भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस या शैतान की यह है कि जिसके पीछे तू पड़जाता है, उसकी सारी दुर्गति करकेतब उसका पीछा छोड़ता है! फिटकार है तुझे और धिकार है तेरे इस पाजीपन को !! निदान, जब तक विलसिया लौटकर न आई. तब तक कुसुम बराबर पड़ी-पड़ी रोती रही लेकिन ज्यों ही दिलसिया आई, त्यों ही उसे देखते ही घबराकर कुसुम उठ बैठी और चट पूछने लगी, " कह क्या जवाव लाई ?" बिलसिया,-(सुस्कुराकर) "इस बक्त तो मैं आपसे खूब गहरा इनाम लिया चाहती हूँ" कुसुम,- कंबखत, इस वक्त शरारतन कर और जल्द बतला कि मेरे खत का क्या जवाब मिला?" बिलसिया,(मुस्कुराकर ) " कुछ भी नहीं!" कुसुम.-(त्योरी बढाकर)" तो तू चूल्हे में जा!" ठीक उसी समय ने आगे पदफर हसते असते