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__ परिच्छेद.]

कुसुमकुमारी

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था कि इस मिठास के भीतर हलाहल भरा हुआ है ! सो, मैं उस की लच्छेदार बातों में उलझकर बातें करता हुआ कुछ दूर तक निकल गया। ज्यों-ज्यों उसकी लच्छेदार बातो से,-जिनका मतलब यही था कि, 'कुसुम से उसका फिर मेल होजाय,-'मैं निकलना चाहता था, त्यों-त्यों वह जान-बूझ कर अपनी बातों का चकाबू बनाता और मुझे उसमे फांसता हुआ आगे बढ़ता जाता था! निदान, लगभग नौ-दस बजे के समय, जब कि मैं उसके साथ चक्कर लगाता हुआ फिर बाबासिद्धनाथ के पासवाली एक धनी झाड़ी में पहुंचा होऊंगा कि किसीने पीछे से मेरे सिर में लाठी की चोट की! उस मार से मैं तलमला-कर गिर गया। इसके बाद फिर कई लाठी और तलवारकी चोटें मुझ पर बैठों; पर उस समय मैं बेहोशी के दर्या में डूबता चला जाता था, इसलिये मैं नहीं कह सकता कि मुझे मारनेवाला कौन था! इसके अलावे मैं और कुछ नहीं जानता।" इसके बाद भैरों सिंह का इजहार हुआ, जिससे यह साफ़ जाहिर होगया कि,-'वसन्तकुमार को मारनेवाला वही पाजी-बेईमान सोनपुर का निकाला हुआ थानेदार करीमबक्श था और उस का मददगार वही बदमाश झगरू साज़िन्दा था, इसके अलावे उन दोनों हरामजादों के साथ और भी दो-चार शोहदे थे। बहुत सी बात कहने के बाद भैरोंसिंह ने अपने इज़हार में यह भी कहा था कि,―"मैने उस झाड़ी में से निकलकर करीमबक्श और झगरू को तेजी के साथ एक तरफ़ भागते हुए देखा था, इस लिए मुझे कुछ शक हुआ और मैंने झाड़ी के अन्दर घुसकर घायल और बेहोश बसन्तकुमार को मुर्दे की हालत में पाया ।" इस बात के ज़ाहिर होने पर उन दोनों हरामखोरों, अर्थात् झगरू और करीमबक्श की बहुत कुछ खोज-ढूंढ की गई, पर जब उन दोनो का पता न लगा तो उन दोनो के नाम गिरफ्तारी का वारंट निकाला गया। इसके बाद कुसुम ने अपनीतरफ़ सेयह इश्तहार दिया कि,-'जो कोई करीमबक्श और झगरू सपाई का पता बतलावेगा' या उन दोनों को गिरफ्तार करादेगा, उसे एक हजार रुपये इनाम दिये जांयगे ।' अच्छा तो अब, जबतक वे दोनों दुष्ट न पकडे जायं. तब तक इस मामले की बात यहीं पर छोड़कर आगे बढ़ना हम उचित समझते हैं