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स्वर्गीयकुसुम

[पन्द्रहवा

लड़ाई की जड़ स्त्री

"रामायणे जनकजा कलहस्य मूलम्,
श्रीभारते द्रुपदराजसुता बभूव ।
अन्याः धुराणनिचयेष्वपि चण्डिकाद्याः,
यहव्यो बभूवुरबला रणहेतुभूताः॥"

(कलाधरः)

बसनत्कुमार दिन पर दिन, लेकिन जल्दी-जल्दी आराम होने लगा, और ज्यों-ज्यों उसकी तबीयत अच्छी होने लगी, त्यों-त्यों कुसुम की खुशी-सच्ची और दिली खुशि बढ़ने लगी। बसनत्कुमार ने होशाहवास दुरुस्त होने पर मजिष्ट्रेट के सामने जो इज़हार दिया था, उसे यहांपर हम नीचे लिख देते हैं, उसीसे पाठक-लोग इस वारदात के सारे भेद को अच्छी तरह समझ जायेंगे। बात यह थी कि जब बसन्तकुमार अच्छी तरह होश में आया, तब एक दिन आरे के मजिष्ट्रट पुलिस के बड़े साहब और कोतवाल को साथ लेकर बाग में आये उस दिन जो इजहार बसन्त ने दिया था, वह नीचे लिखा जाता है,-- बसन्तकुमार ने कहा,―“मेरा नाम बसन्तकुमार है, मेरे बाप का नाम अनन्तकुमार था, में जाति का क्षत्री हूँ और रहनेवाला आरे का हूं। हरिहरक्षेत्र वाली घटना के कारण, जो कि सब पर जाहिर है, बीबी कुसुमकुमारी मुझपर बड़ी मेहरबानी रखती हैं, इस वजह से कई लोग मुझसे डाह रखते हैं। "उस दिन. जिस दिन कि यह बात हुई थी, मैं शाम को अपने डेरे से उठकर बाबा सिद्धनाथजी के दर्शन के लिये चला; क्यों कि मैं नित्य ही नियम से वहां दर्शन करने जाया करता था। वहीं, मन्दिर में झगरू सपरदाई से मेरी चार-आखें हुई ! यद्यपि वह मुझसे बहुत खार खाता और कुढ़ता था, जिस सवव से कि मैं उससे बात नहीं करताथा: तो भी उस दिन वह खुद मेरे पास आया और सलाम करके घुल घुल-कर बातें करने लगा मैं नहीं जानता